Narad Jayanti 2022: नारद जयंती सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है जो सैकड़ों हजारों हिंदू भक्तों द्वारा मनाई जाती है. भगवान विष्णु के सबसे बड़े भक्तों में से एक 'देवर्षि नारद' के जन्म दिवस के उपलक्ष में नारद जयंती मनाई जाती है. देवर्षि नारद मुनि विभिन्न लोकों में यात्रा करते थे, जिनमें पृथ्वी, आकाश, और पाताल का समावेश होता था ताकि देवताओं और देवताओं तक संदेश और सूचना का संचार किया जा सके. उन्होंने गायन के माध्यम से संदेश देने के लिए अपनी वीणा का उपयोग किया. ऐसा माना जाता है कि वीणा का आविष्कार सर्व प्रथम नारद मुनि ने ही किया था. ऐसे में आने वाली नारद जयंती के पर्व के अवसर पर चलिए जानते हैं नारद मुनि के जन्म से जुड़ी दिलचस्प कथा के बारे में.
नारद मुनि की जन्म कथा
ब्रहमा के पुत्र होने से पहले नारद मुनि एक गंधर्व थे. पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने पूर्व जन्म में नारद 'उपबर्हण' नाम के गंधर्व थे. उन्हें अपने रूप पर बहुत ही घमंड था. एक बार स्वर्ग में अप्सराएँ और गंधर्व गीत और नृत्य से ब्रह्मा जी की उपासना कर रहे थे तब उपबर्हण स्त्रियों के साथ वहां आए और रासलीला में लग गए.
यह देख ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित हो उठे और उस गंधर्व को श्राप दे दिया कि वह 'शूद्र योनि' में जन्म लेगा. बाद में गंधर्व का जन्म एक शूद्र दासी के पुत्र के रूप में हुआ. दोनों माता और पुत्र सच्चे मन से साधू संतो की सेवा करते.
नारद मुनि बालक रुप में संतों का जूठा खाना खाते थे जिससे उनके हृदय के सारे पाप नष्ट हो गए. पांच वर्ष की आयु में उनकी माता की मृत्यु हो गई. तब वह एकदम अकेले हो गए थे.
माता की मृत्यु के पश्चात देवर्षि नारद ने अपना समस्त जीवन ईश्वर की भक्ति में लगाने का संकल्प लिया. कहते हैं एक दिन वह एक वृक्ष के नीचे ध्यान में बैठे थे तभी अचानक उन्हें भगवान की एक झलक दिखाई पड़ी जो तुरंत ही अदृश्य हो गई.
इस घटना के बाद से उनके मन में ईश्वर को जानने और उनके दर्शन करने की इच्छा और प्रबल हो गई. तभी अचानक आकाशवाणी हुई कि इस जन्म में उन्हें भगवान के दर्शन नहीं होंगे बल्कि अगले जन्म में वह उनके पार्षद के रूप में उन्हें पुनः प्राप्त कर सकेगें.
समय आने पर यही बालक(नारद मुनि) ब्रह्मदेव के मानस पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुए जो नारद मुनि के नाम से चारों ओर प्रसिद्ध हुए. देवर्षि नारद को श्रुति-स्मृति, इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष और योग जैसे कई शास्त्रों का प्रकांड विद्वान माना जाता है.
देविर्षि नारद के सभी उपदेशों का निचोड़ है- सर्वदा सर्वभावेन निश्चिन्तितै: भगवानेव भजनीय:। अर्थात् सर्वदा सर्वभाव से निश्चित होकर केवल भगवान का ही ध्यान करना चाहिए.