नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। साधक एवं योगी इस दिन अपने मन को भगवती मां ब्रह्मचारिणी के श्री चरणों में एकाग्रचित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं। फलदायिनी देवी ब्रह्मचारिणी मां का स्वरूप अत्यंत भव्य, तेजयुक्त और ज्योतिर्मय हैं।
माता ब्रह्मचारिणी सफेद वस्त्र पहने हुए बहुत ही सौम्य एवं सुंदर लगती हैं तथा माता के दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल लिए हुए है तथा इनका स्वभाव बहुत ही सात्विक है।
शक्ति का यह दूसरा स्वरूप भक्तों को अमोघ फल प्रदान करने वाला होता है। देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
माता ब्रह्मचारिणी देवी की कथा
एक पौराणिक आख्यान के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी, जिन्हें मां भगवती भी कहा जाता है, उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए एक हजार वर्षों तक फलों का सेवन कर तपस्या की थी। इसके पश्चात तीन हजार वर्षों तक पेड़ों की पत्तियां खाकर तपस्या की। इतनी कठोर तपस्या के बाद इन्हें ब्रह्मचारिणी स्वरूप प्राप्त हुआ।
पूजा विधि
1- माता की फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें तथा उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान करायें।
2- देवी को प्रसाद अर्पित करें।
3- पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें।
4-अपने हाथों में एक फूल लेकर इस मंत्र का जाप करते हुए प्रार्थना करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
'दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू. देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा'
Source : News Nation Bureau