हमारे सामने जो कुछ भी घटित होता है, जिसे हम प्रपंच का नाम देते हैं, ज़रूरी नहीं कि वह सब हमें दिखाई दे. वह जो अदृश्य है, जिसे हमारी इन्द्रियां अनुभव नहीं कर सकती वह हमारी कल्पना से बहुत परे और विशाल है.
सूक्ष्म जगत जो अदृश्य, अव्यक्त है, उसकी सत्ता मां कात्यायनी चलाती हैं. वह अपने इस रूप में उन सब की सूचक हैं जो अदृश्य या समझ के परे है. मां कात्यायनी दिव्यता के अति गुप्त रहस्यों की प्रतीक हैं.
क्रोध किस प्रकार से सकारात्मक बल का प्रतीक है और कब यह नकारात्मक आसुरी शक्ति का प्रतीक बन जाता है ? इन दोनों में तो बहुत गहरा भेद है. आप सिर्फ़ ऐसा मत सोचिये कि क्रोध मात्र एक नकारात्मक गुण या शक्ति है. क्रोध का अपना महत्व, एक अपना स्थान है. सकारात्मकता के साथ किया हुआ क्रोध बुद्धिमत्ता से जुड़ा होता है और वहीं नकारात्मकता से लिप्त क्रोध भावनाओं और स्वार्थ से भरा होता है. सकारात्मक क्रोध एक प्रौढ़ बुद्धि से उत्पन्न होता है. क्रोध अगर अज्ञान, अन्याय के प्रति है तो वह उचित है. अधिकतर जो कोई भी क्रोधित होता है वह सोचता है कि उसका क्रोध किसी अन्याय के प्रति है अतः वह उचित है! किंतु अगर आप गहराई में, सूक्ष्मता से देखेंगे तो अनुभव करेंगे कि ऐसा वास्तव में नहीं है. इन स्थितियों में क्रोध एक बंधन बन जाता है. अतः सकारात्मक क्रोध जो अज्ञान, अन्याय के प्रति है वह माँ कात्यायनी का प्रतीक है.
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आपने बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सुना होगा. कुछ लोग इसे प्रकृति का प्रकोप भी कहते हैं. उदाहरणतः बहुत से स्थानों पर बड़े - बड़े भूकम्प आ जाते हैं या तीव्र बाढ़ का सामना करना पड़ता है. यह सब घटनाएँ देवी कात्यायनी से सम्बन्धित हैं. सभी प्राकृतिक विपदाओं का सम्बन्ध माँ के दिव्य कात्यायनी रूप से है. वह क्रोध के उस रूप का प्रतीक हैं जो सृष्टि में सृजनता, सत्य और धर्म की स्थापना करती हैं. माँ का दिव्य कात्यायनी रूप अव्यक्त के सूक्ष्म जगत में नकारात्मकता का विनाश कर धर्म की स्थापना करता है. ऐसा कहा जाता है कि ज्ञानी का क्रोध भी हितकर और उपयोगी होता है; जबकि अज्ञानी का प्रेम भी हानिप्रद हो सकता है. इस प्रकार माँ कात्यायनी क्रोध का वो रूप है जो सब प्रकार की नकारात्मकता को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है.
Source : News Nation Bureau