जैसा आप सभी जानते हैं कि नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा जाती है. देवी के दर्शन और नौ दिन तक व्रत और हवन करने के बाद कन्या पूजन का बड़ा महत्व है. मार्केंडय पुराण के अनुसार सृष्टि सृजन में शक्ति रूपी नौ दुर्गा, व्यस्थापाक रूपी नौ ग्रह, चारों पुरुषार्थ दिलाने वाली नौ प्रकार की भक्ति ही संसार संचालन में प्रमुख भूमिका निभाती हैं. आमतौर पर कन्या पूजन सप्तमी से ही शुरू हो जाता है. सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर पूजा जाता है.
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नौ कन्या का महत्व
जिस प्रकार किसी भी देवता के मूर्ति की पूजा करके हम संबंधित देवता की कृपा प्राप्त कर लेते हैं, उसी प्रकार मनुष्य प्रकृति रूपी कन्याओं का पूजन करके साक्षात मां भगवती की कृपा पा सकते हैं. इन कन्याओं में मां दुर्गा का वास रहता है. शास्त्रानुसार कन्या के जन्म का एक संवत (वर्ष) बीतने के बाद कन्या को कुवांरी की संज्ञा दी गई है. अतः दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या को अ+उ+म त्रिदेव-त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शांभवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा के समान मानी जाती है. धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं.
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यह कहा गया है दुर्गा सप्तशती में
दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि कुमारीं पूजयित्या तू ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् अर्थात दुर्गापूजन से पहले कुंआरी कन्या का पूजन करने के पश्चात ही मां दुर्गा का पूजन करें. भक्तिभाव से की गई एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो कन्या की पूजा से भोग, तीन की चारों पुरुषार्थ, और राज्यसम्मान, पांच की पूजा से बुद्धि-विद्या, छह वर्ष की पूजा से कार्यसिद्धि, सात की पूजा से परमपद, आठ की पूजा से अष्टलक्ष्मी और नौ कन्या की पूजा से सभी एश्वर्य की प्राप्ति होती है.
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इसलिए होता है कन्या पूजन
देवी पुराण के अनुसार इंद्र ने जब ब्रह्माजी से भगवती को प्रसन्न करने की विधि पूछी, तो उन्होंने सर्वोत्तम विधि के रूप में कुमारी पूजन ही बताया. नौ कुमारी कन्याओं और एक कुमार को विधिवत घर में बुलाकर और उनके पांव धोकर रोली-कुमकुम लगाकर पूजा-अर्चना की जाती है. इसके बाद उन्हें वस्त्र आभूषण, फल पकवान और अन्न आदि दिया जाता है. पुराण के अनुसार इनके ध्यान और मंत्र इस प्रकार हैं...
मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्। नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।।
जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि । पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।
!! कुमार्य्यै नम:, त्रिमूर्त्यै नम:, कल्याण्यै नमं:, रोहिण्यै नम:, कालिकायै नम:, चण्डिकायै नम:, शाम्भव्यै नम:, दुगायै नम:, सुभद्रायै नम: !!
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कन्या पूजन विधि
कन्याओं का पूजन करते समय पहले उनके पैर धो कर पंचोपचार विधि से पूजन करें और बाद में भोजन कराएं और प्रदक्षिणा करते हुए यथा शक्ति वस्त्र, फल और दक्षिणा देकर विदा करें. इस तरह नवरात्रि पर्व पर कन्या का पूजन करके भक्त मां की कृपा पा सकते हैं.
HIGHLIGHTS
- सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर पूजा जाता है.
- दुर्गापूजन से पहले कुंआरी कन्या का पूजन करने के पश्चात ही मां दुर्गा का पूजन करें.
- धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं.