Nishkalank Mahadev Mandir : इस शिवलिंग पर चिता की राख चढ़ाने से मिलता है मोक्ष
Nishkalank Mahadev Mandir: कालों का काल महाकाल का एक मंदिर ऐसा भी है जहां पर शिवलिंग की राख चढ़ाने पर मोक्ष मिलता है. आप अपने जिस भी मृतक की राख यहां शिवलिंग पर विधिपूर्वक चढ़ाते हैं, ऐसी मान्यता है कि उन्हें मोक्ष मिलता है.
नई दिल्ली:
Nishkalank Mahadev Mandir: निष्कलंक महादेव का मंदिर गुजरात में भाव नगर के अरब सागर में स्थित है. रोज़ अरब सागर की लहरें यहां के शिवलिंग पर जलाभिषेक करती हैं. लोग पैदल चलकर ही इस मंदिर में दर्शन करने आते है. इसके अलावा उन्हें टाइट्स उतरने का इंतजार करना पड़ता है, क्योंकि ज्वार के समय सिर्फ मंदिर का खंबा ही नजर आता है जिसे देखकर ये अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता कि समुद्र में पानी के नीचे भगवान महादेव का प्राचीन मंदिर भी है और ये मंदिर महाभारत काल का बताया जाता है.
ऐसा माना जाता है कि महाभारत युद्ध में पांडवों ने कौरवों का वध कर युद्ध जीता था. युद्ध समाप्ति के बाद पांडवों को ज्ञात हुआ कि उसने अपने ही सगे संबंधियों की हत्या कर महापाप किया है. इस महापाप से छुटकारा पाने के लिए पांडव भगवान श्रीकृष्ण के पास गए जहां श्री कृष्ण ने पांडवों को पाप से मुक्ति के लिए एक काल ध्वज और एक काली गाय सौंपी. पांडवों को गाय का अनुसरण करने को कहा और कहा कि जब गाय और ध्वज का रंग काले से सफेद हो जाए तो समझ लेना कि तुम सबको पाप से मुक्ति मिल गई है. साथ ही श्रीकृष्ण ने पांडवों से यह भी कहा कि जिस जगह यह चमत्कार होगा वहीं पर तुम भगवान शिव की तपस्या भी करना.
पांचों भाई भगवान श्री कृष्ण के कहे अनुसार काली ध्वजा हाथ में लेकर काली गाय अपने पीछे-पीछे लेकर चलने लगे. इसी क्रम में वो सब कई दिनों तक अलग-अलग जगहों पर गए, लेकिन गाय और ध्वज का रंग नहीं बदला. जब, वर्तमान गुजरात में स्थित कोहली आंख तट पर पहुंचे तो गाय और ध्वजा का रंग सफेद हो गया. इससे पांचों पांडव भाई बड़े खुश हुए और वही पर भगवान शिव का ध्यान करते हुए तपस्या करने लगे. भगवान भोलेनाथ उनकी तपस्या से खुश हुए और पांचों पांडवों को लिंग रूप में अलग-अलग दर्शन दिए.
पांचों शिवलिंग आज भी यहां पर स्थित हैं. इन पांचों शिवलिंग के सामने नंदी की प्रतिमा भी है. पांचों शिवलिंग का वर्गाकार चबूतरे पर बने हुए है. इस चबूतरे पर एक छोटा सा पानी का तालाब भी है. जिसे पांडव तालाब कहा जाता है. श्रद्धालु पहले उसमें अपने हाथ पांव धोते थे और फिर शिवलिंगों की पूजा अर्चना करते थे. यहां पर आकर पांडवों को अपने भाइयों की हत्या के कलंक से मुक्ति मिली थी और इसीलिए इसे निष्कलंक महादेव कहते हैं.
श्रवण के महीने में अमावस्या को यहां मेला लगता है, जिसे भाद्र भी कहा जाता है और ऐसे ही प्रत्येक अमावस्या के दिन यहां भक्तों की विशेष भीड़ रहती है. लोगों की ऐसी मान्यता है कि अगर हम हमारे प्रियजनों की चिता की राख शिवलिंग पर लगाकर जल में प्रवाहित कर दें तो, उनको मोक्ष मिल जाता है. इस मंदिर में भगवान शिव को राख, दूध, दही और नारियल चढ़ाए जाते हैं. यहां हर साल भादवी के महाराजा के वंशराज मंदिर का ध्वज फहराते हैं और उसी से मेले की शुरुआत होती है और अगले साल तक ये ध्वज मंदिर के ऊपर फहराया जाता है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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