शायद ही कोई ऐसा हिंदू घर होगा जहां भगवान श्री हरि यानी विष्णुजी की 'ओम जय जगदीश हरे' आरती नहीं होती होगी. ऐसे में आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह आरती बीती डेढ़ सदी से हिंदू धर्म में पूजा पद्धिति का एक अभिन्न हिस्सा है. आपकी जानकारी के लिए यह तथ्य बेहद काम का है कि 1870 ईस्वी में इस आरती को रचा गया. इस आरती को बनाया था गायक व विलक्षण प्रतिभाशाली विद्वान पंडित श्रद्धाराम (शर्मा) फिल्लौरी, जिनका जन्म 30 सितंबर 1837 को पंजाब के लुधियाना के पास फुल्लौरी गांव में हुआ था. पंडित श्रद्धाराम प्रसिद्ध साहित्यकार तो थे ही, साथ ही सनातन धर्म-प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे. इस आरती को गाकर भक्तजन एकादशी पर श्री हरि को प्रसन्न कर सकते हैं.
धार्मिक व्याख्यानदाता,कथाकार और समाजसेवी थे पंडितजी
पंजाब में पंडित श्रद्धाराम की पहचान एक धार्मिक व्याख्यानदाता, कथाकार व समाजसेवी के रूप में भी थी. पंडित श्रद्धाराम जी पंजाब के विभिन्न स्थलों पर यायावरी करते हुए रामायण व महाभारत की कथाएं लोगों को सुनाते रहते थे. दीन-दुखियों के प्रति सहानुभूति रखना भी उनके स्वभाव में था, यही कारण था कि कथा में जो भी चढ़ावा आता, उसे वह उनमें सहर्ष बांट देते थे. उनके कथा वाचन में भी आकर्षण का केंद्र होती थी, प्रवचन से पूर्व गायी जाने वाली आरती 'ओम जय जगदीश हरे, भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे'. उन्होंने अनेक धर्मसभाओं की भी स्थापना की थी.
अरबों हिंदू घरों में गाई जाती है आरती
इस आरती की रचना के पीछे पंडित जी की कोई स्वमहत्व की कामना नहीं दिखती, क्योंकि सामान्य रूप से जब कोई कवि अपनी रचना संसार के समक्ष प्रस्तुत करता है तो प्राय: ही काव्य या कविता के अंत में अपना नाम या उपनाम देकर अपनी पहचान कराता है. ऐसे में पंडित जी द्वारा रचित आरती में उनका पूरा नाम तो नहीं मिलता केवल आरती की अंतिम अद्र्धाली में एक संकेत मिलता है, जहां वे कहते हैं- 'श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ संतन की सेवा'. आज इसकी रचना के इतने वर्षों बाद भी 'ओम जय जगदीश हरे' की लोकप्रियता इतनी है, कि किसी भी पूजा अनुष्ठान के अंत में इसे गाकर ही समापन होता है. पंडित जी का निधन 24 जून 1881 को हुआ था.
ये है आरती
ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट
क्षण में दूर करे।। ओम जय...
जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का।
स्वामी दुख बिनसे मन का
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का।। ओम जय...
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आश करूं किसकी।। ओम जय...
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी।
स्वामी तुम अंतरयामी
परम ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी।। ओम जय...
तुम करुणा के सागर, तुम पालन करता।
स्वामी तुम पालन करता
दीन दयालु कृपालु, कृपा करो भरता।। ओम जय...
तुम हो एक अगोचर सबके प्राण पति।
स्वामी सबके प्राण पति
किस विधि मिलूं दयामी, तुमको मैं कुमति।। ओम जय...
दीन बंधु दुख हरता, तुम रक्षक मेरे।
स्वामी तुम रक्षक मेरे
करुणा हस्त बढ़ाओ, शरण पड़ूं मैं तेरे।। ओम जय...
विषय विकार मिटावो पाप हरो देवा।
स्वामी पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ संतन की सेवा।। ओम जय...
Source : News Nation Bureau