पारस परिवार (Paras Parivaar) के मुखिया श्री पारस भाई (Shri paras bhai) ने लोगों को होली की शुभकामनाएं दीं. उन्होंने कहा, होली सिर्फ रंगों को त्योहार नहीं है बल्कि इस दिन लोग पुरानी कटुता और दुश्मनी को भूलकर दोस्त बन जाते हैं. होली में लोगों को रंगों के बजाय गुलाल से होली खेलनी चाहिए, ताकि किसी को कोई हानि न पहुंचे.
मां भगवती की साधना के साथ-साथ समाज की सेवा करते सच्चे साधक, एस्ट्रोलॉजर (Astrologer), बेहतरीन मोटिवेटर (Motivator), मां भगवती व शिव के भजनों (Maa Bhagwati bhajans) से दुनिया को मंत्रमुग्ध कर देने वाले श्री पारस भाई जी (Shri Paras Bhai Ji) ने कहा, होली का धार्मिक स्वरूप भी है. यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है. पहले दिन होलिका जलाई जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं. दूसरे दिन लोग एक-दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल लगाकर होली का त्योहार धूमधाम से मनाते हैं.
श्री पारस भाई गुरु जी (Shri Paras Bhai Guru ji) भी खुद भी बड़े धूमधाम से होली का त्योहार मनाते हैं. वह गरीबों और असहायों के बीच जाकर उनको गुझिया, गुलाल का पैकेट, भोजन और नए कपड़े देते हैं. उनका कहना है कि क्या गरीबों को होली मनाने का हक नहीं है. अगर है तो क्यों न उनके साथ मिलकर होली मनाई जाए. इसलिए श्री पारस भाई (Shri paras bhai) के प्रति लोगों के मन में सम्मान और आदर है.
पारस भाई जी (Paras Bhai ji) ने कहा, आज की पीढ़ी पता ही नहीं है कि होली क्यों मनाई जाती है. उन्होंने बताया कि जिस समय असुर संस्कृति शक्तिशाली हो रही थी, उस समय प्रह्लाद नामक बालक का जन्म हुआ था. उसका पिता असुर राज हिरण्यकश्यप का आदेश था कि उसके राज्य में कोई विष्णु की पूजा नहीं करेगा, लेकिन प्रह्लाद विष्णु भक्त था और ईश्वर में उसकी अटूट आस्था थी. इस पर क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने उसे मृत्यु दंड दिया. हिरण्यकश्यप की बहन, होलिका, जिसको आग से न मरने का वर था, प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई, परंतु ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद को कुछ न हुआ और वह स्वयं भस्म हो गई. अगले दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप को मार दिया और सृष्टि को उसके अत्याचारों से मुक्ति प्रदान की. इसी अवसर को याद कर होली मनाई जाती है.
श्री पारस भाई (Shri paras bhai) ने कहा, जिस तरह होली के दिन असुरों का नाश हो गया था, उसी तरह हम लोगों को भी अपने अंदर छिपी बुराइयों को दूर करना चाहिए. उन्होंने कहा, कई बार लोग होली का गलत इस्तेमाल करते हैं, जिसका बुरा दुस्परिणाम होता है, इसलिए हम लोगों को बिना किसी भेदभाव और ऊंच-नीच के इस त्योहार को मनाना चाहिए.
(यह आर्टिकल न्यूजस्टेट की सिंडिकेट फीड से ऑटो जेनरेटेड है.)
Source : agencies