कहते हैं जिन्होंने प्रेम किया, उन्होंने परमात्मा को ढूंढ लिया है. केवल प्रेम की सच्चा मार्ग है, जिस पर आप चलते हैं तो आप परमात्मा को नहीं, बल्कि उल्टा परमात्मा आपको ढूंढने लगता है. प्रेम ही हमको एक-दूसरे से बांधे हुए हैं. जब तक प्रेम का एक छोटा सा अंश भी जीवित है, तब तक ये दुनिया यूं ही चलती रहेगी. ऐसे ही प्रेम से परिपूर्ण महारानी महाकाली के साधक और पवित्र सूर्य कुण्डली के रचियता, बेहतर मोटिवेटर गुरुदेव पारस भाई जी हर जात-पात, हर धर्म और हर ऊंच-नीच से ऊपर केवल सिर्फ इंसानियत को ही सर्वोपरि मानने वाले अपने आप में बहुत बड़े उदाहरण प्रतीत होते हैं.
पारस परिवार के मुखिया पारस भाई जी की नजर में न तो कोई गरीब है और न ही कोई अमीर, न तो कोई छोटा है और न ही कोई बड़ा. वे केवल समाज के हर छोटे वर्ग के उत्थान की बात करते हैं. आज के इस बुरे समय में जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस से पीड़ित है तो पारस परिवार के मुखिया ने भी सभी के लिए अपने मन के द्वार खोल दिए हैं.
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आज इस परिवार के सैकड़ों कार्यकर्ता सड़कों पर रहने वालों और आसमान की नीली चादर को ही अपनी छत समझने वालों वे लोग जिनके पास न तो दो वक्त का खाना है और न ही कोई दवा, ऐसे लोगों के लिए पारस परिवार के कार्यकर्ता खाना पहुंचाकर कुछ अच्छा करने का प्रयास कर रहे हैं. क्योंकि, कहते हैं कि परमात्मा छोटे-से-छोटे जीव के खाने की व्यवस्था पहले ही कर देता है. इसके लिए वे कुछ नेक लोगों को चुनता है जो उनके लिखे कार्य में एक जरिये बनते हैं. ऐसा ही जरिया है पारस परिवार के कार्यकर्ताओं को, जो मुश्किल से मुश्किल समय में भी अपनी सेवा को ड्यूटी की तरह निभाते हैं. चाहे सर्दी हो या गर्मी, चाहे धूप हो या बारिश.
ये कार्यकर्ता हमेशा एक सैनिक की तरह समाज को सेवा देने के लिए मुस्तैद रहते हैं. पारस परिवार की रसोई में लंगर रोज बनाया जाता है और उसमें सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है, क्योंकि लंगर में जितनी स्वच्छता होगी, लंगर उतनी ही स्वादिष्ट और शरीर को उर्जा देने वाला होगा. उसके बाद पारस परिवार कार्यकर्ता पक्के हुए भोजन को अच्छे से डब्बे में डालकर उसे धर्म रथ में रखना शुरू करते हैं.
इस दौरान भी सबसे ज्यादा ध्यान सफाई और सुरक्षा पर ही रखा जाता है. खाना बनाते और पैकिंग करते समय सेवादारों के मुंह पर मास्क और हाथों में ग्लब्स जरूरी होता है और पारस भाई जी का सख्त आदेश भी है.
जब लंगर पूरी तरह से बन जाता है तो उस भोग के चार हिस्से निकाले जाते हैं, पहला मां शक्ति भगवती के लिए, दूसरा पितरों के लिए, तीसरा गौ माता के लिए और चौथा पक्षियों के लिए. इन चारों के लिए भोग निकालने बाद ही यात्रा शुरू होती है उन लोगों के लिए जिनके नसीब में ये अन्न के दाने लिखे होते हैं. ये यात्रा रोजाना होती है, चाहे हालात कैसे भी हो. चाहे आंधी हो, तूफान हो या बारिश हो, यह यात्रा थमनी नहीं है. हम और आप भी यहीं चाहेंगे कि यह यात्रा कभी थमे नहीं.
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फिर जब यह धर्म रथ उन लोगों तक पहुंचता है, तब उन बच्चों के मुंह से निकले जयकारे कार्यकर्ताओं के लिए एक पुरस्कार के रूप में होते हैं. इससे कार्यकर्ताओं को लगता है कि हां, उन्होंने कुछ अच्छा किया है, क्योंकि वे ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें हम अपनी भागती-दौड़ती दुनिया में बिल्कुल भूल चुके हैं. जिनके जिंदा रहने या न रहने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है. पर उस परमात्मा को सभी की चिंता है, सभी को उस शक्ति से फर्क पड़ता है. उसके लिए पारस भाई जी जैसे लोगों को एक जरिया बनाकर समाज में खड़ा कर देता है.
ऐसे ही पारस परिवार के कार्यकर्ता इस तरह का जरिया बने रहने के लिए उस परमात्मा का शुक्रिया अदा करते हैं तो आप क्या कर रहे हैं और क्या सोच रहे हैं? आइये हमारी इस यात्रा में हमारे साथी बनिए. और इस नेक कार्य में आप जो भी कर सकते हैं, चाहे तन से, मन से और चाहे धन से करें, पीछे नहीं रहे. साथ ही सनातन के एक नियम को हमेशा याद रखें, अगर आप पाना चाहते हैं तो पहले अर्पित करना सीखें. पारस परिवार के साथ जुड़कर अपनी सेवा देने या फिर लंगर सेवा में अपना योगदान देने के लिए कॉल करें- 011-42688888