हिन्दी नववर्ष के अनुसार वैशाक मास की शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती हैं. इसी दिन इनका भी जन्म हुआ था. ऋषि परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार भी माना जाता हैं. 7 मई को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया है. इस तिथि को अक्षय तृतीया के नाम से भी जाना जाता है. परशुराम ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे. परशुराम भगवान शिव के परमभक्त होने के साथ न्याय के देवता भी माने जाते हैं.
उन्होंने क्रोध में न सिर्फ 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया बल्कि भगवान गणेश भी उनके गुस्से का शिकार हो चुके हैं. आइए जानते हैं परशुराम से जुड़ी ऐसी ही खास बातें जो शायद ही अब तक आपने कभी सुनी होंगी.
भगवान राम ने तोड़ा था परशुराम का धनुष
त्रेतायुग में सीता स्वयंवर के दौरान टूटने वाला धनुष भगवान परशुराम का ही था. अपने धनुष के टूटने से क्रोधित परशुराम का जब लक्ष्मण के साथ संवाद हुआ तो भगवान श्री राम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र सौंप दिया था. यह वहीं सुदर्शन चक्र था जो द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के पास था.
परशुराम ने किया था अपनी माता का वध
भगवान परशुराम माता रेणुका और ॠषि जमदग्नि की चौथी संतान थे. परशुराम जी ने अपने पिता की आज्ञा के बाद अपनी मां का वध कर दिया था. जिसकी वजह से उन्हें मातृ हत्या का पाप भी लगा. उन्हें अपने इस पाप से मुक्ति भगवान शिव की कठोर तपस्या करने के बाद मिली. भगवान शिव ने परशुराम को मृत्युलोक के कल्याणार्थ परशु अस्त्र प्रदान किया, यही वजह थी कि वो बाद में परशुराम कहलाए.
शिव जी के अनन्य भक्त थे परशुराम
परशुराम भगवान शिव के अनन्य भक्त थे. ये दिन रात शिव जी की पूजा करते थे. शिवजी परशुराम की पूजा से अधिक प्रसन्न रहते थें. ऐसा माना जाता है कि इन्होंने धरती पर 21 बार क्षत्रियों का संहार किया था. मान्यता है कि इसी दिन से सतयुग की शुरुआत हुई थी.
गणपति को भी दिया था दंड
ब्रह्रावैवर्त पुराण के अनुसार, परशुराम एक बार भगवान शिव से मिलने उनके कैलाश पर्वत पहुंच गए. लेकिन वहां उन्हें रास्ते में ही उऩके पुत्र भगवान गणेश ने रोक दिया. इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ दिया था. जिसके बाद भगवान गणेश एकदंत कहलाए.
भगवान शिव ने दिया था परशु अस्त्र
भगवान परशुराम जी की माता का नाम रेणुका और पिता का नाम जमदग्नि ॠषि था. उन्होंने पिता की आज्ञा पर अपनी मां का वध कर दिया था. जिसके कारण उन्हें मातृ हत्या का पाप लगा, जो भगवान शिव की तपस्या करने के बाद दूर हुआ. भगवान शिव ने उन्हें मृत्युलोक के कल्याणार्थ परशु अस्त्र प्रदान किया, जिसके कारण वे परशुराम कहलाए.
हर युग में रहे मौजूद
महाभारत और रामायण दो युगों की पहचान हैं. रामायण त्रेतायुग में और महाभारत द्वापर में हुआ था. पुराणों के अनुसार एक युग लाखों वर्षों का होता है. ऐसे में देखें तो भगवान परशुराम ने न सिर्फ श्री राम की लीला बल्कि महाभारत का युद्ध भी देखा.
Source : News Nation Bureau