24 सितंबर 2018 से पितृ पक्ष शुरू हो गया है, जो कि 8 अक्टूबर तक रहेगा. भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिन पितृ पक्ष कहे जाते हैं. श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और 17 दिन का कर्मकांड करते हैं. इस दौरान पूर्वजों की मृत्युतिथि पर श्राद्ध किया जाता. पौराणिक मान्यता है कि पितृपक्ष में पूर्वजों को याद कर किया जाने वाला पिंडदान सीधे उन तक पहुंचता है और उन्हें सीधे स्वर्ग तक ले जाता है.
माना जाता है कि बिहार गया में पूर्वजों का पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. गया में विश्व प्रसिद्ध पितृ पक्ष मेला शुरू हो गया है जो कि पूरे 17 दिन तक चलेगा. देश-विदेश से हजारों की संख्या में पिंड दान करने के लिए लोग मोक्षधाम पहुंचने लगे हैं.
इन दिनों के लिए पितृ हमारे घर में रहेंगे और तर्पण के माध्यम से तृप्त होंगे. आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष माना जाता है. वैदिक परंपरा और हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है.
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मान्यता के मुताबिक पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है, जब वह अपने जीवन काल में जीवित माता-पिता की सेवा करे और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि (बरसी) तथा महालय (पितृपक्ष) में उनका विधिवत श्राद्ध करें.
है कि पिंडदान करने से पुरखों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। बिहार के गया में पिंडदान का अपना खास महत्व है।
गया में ही क्यों पिंडदान?
गया को विष्णु का नगर माना जाता है, जिसे लोग विष्णु पद के नाम से भी जानते हैं. यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. विष्णु पुराण के अनुसार यहां पूर्ण श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलता है. मान्यता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में उपस्थित रहते हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहते हैं.
गया में भगवान राम ने भी किया था पिंडदान
ऐसी मान्यताएं हैं कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए यहीं आये थे और यही कारण है की आज पूरी दुनिया अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए आती है.
Source : News Nation Bureau