पूर्वजों को मुक्ति देने वाले पितृ पक्ष का आगाज 6 सितंबर से हो गया है । 15 दिन तक चलने वाला पितृ पक्ष इसबार 6 सितंबर श्राद्ध से शुरू होकर 20 सितंबर सर्वपितृ अमावस्या तक चलेंगे।
पूर्णिमा व प्रतिपदा एक ही दिन होने से दोनों तिथियों के श्राद्ध लोग एक ही दिन दोपहर में कर सकेंगे। पहले दिन पूर्णिमा व प्रतिपदा का श्राद्ध होगा और तिथि घटने से लगातार दूसरी बार इस वर्ष भी श्राद्ध का एक दिन कम हो गया। इसलिए 16 दिन की जगह 15 दिन ही श्राद्ध होगा।
श्रद्धालु पितृ शांति के लिए पंडितों से पिंडदान-तर्पण कराने के लिए अलग-अलग शहरों में गंगा नदी और अन्य पवन घाटों की तरफ बड़ी संख्या में उमड़ेंगे।
हमारे शास्त्रों मे तिथियों, करण और नक्षत्र को बहुत महत्व दिया जाता है। इनका हमारे पंचाग में भी बड़ा महत्व है। नक्षत्र से जन्म व तिथियों से जन्मदिवस व मृत्यु तिथि (श्राद्ध) व करण से भद्रा का विचार किया जाता है।
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कहते है जिसकी जन्म कुंडली में पितृ दोष होता है उन मनुष्य को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है जैसे- शादी में विलंब, घर में शुभ कार्यो का न होना, संतान प्राप्ति में परेशानी, कर्ज होना और घर में आए दिन किसी न किसी का बीमार होना जैसे परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
इसलिए उनके लिए ये समय पितृपक्ष का या श्राद्ध का उस पितृ दोष के निवारण के लिए बहुत ही अच्छा मौका है। पितृदोष की शांति के लिए किसी भी तीर्थ स्थान पर जाकर पितृों के लिए तर्पण करें और दान करना चाहिये।
क्या है पिंडदान और क्या है इसकी महत्ता
हिंदू मान्यता के अनुसार किसी वस्तु के गोलाकर रूप को पिंड कहा जाता है, प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड माना गया है। पिंडदान के समय मृतक की आत्मा को अर्पित करने के लिए जौ या चावल के आटे को गूंथकर बनाई गई गोलात्ति को पिंड कहते हैं।
कहते हैं कि अगर पितरों की आत्मा को मोक्ष नहीं मिला है, तो उनकी आत्मा भटकती रहती है और उनकी संतानों के जीवन में भी कई बाधाएं आती हैं। इसलिए गया जाकर पितरों का पिंडदान जरूरी माना गया है।
शास्त्रों में बताया गया है कि पितृों के लिए अपराह्न काल माना गया है इसलिए अमावस्या 19 सितंबर को दोपहर 11.53 पर लग रही है, जो 20 सितंबर को दोपहर 11.00 बजे समाप्त हो जाएगी। इसलिए सभी को सर्व पितृ श्राद्ध व तर्पण विसर्जन 19 को ही कर लेना चाहिए क्योंकि पितृों का विसर्जन अमावस्या तिथि में सांयकाल को करने का विधान है जो 20 को 11: 00 बजे समाप्त हो रही है।
जिसकी माता-पिता, चाचा ताऊ या जिस किसी का भी श्राद्ध करना चाह रहे हैं तो जिस तिथि में उनकी मृत्यु हुई हो उसी तिथि पर उनका श्राद्ध करना चाहिए। यदि किसी कारणवश आपको उनकी मृत्यु तिथि नहीं पता है तो फिर आप सर्व पितृ अमावस्या वाले दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं।
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Source : News Nation Bureau