Pitru Paksha 2019: गया में ही क्यों किया जाता है पितरों का श्राद्ध, जानें

मान्यता है कि बिहार के गया में पूर्वजों का पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसे में हिन्हुओं के लिए गया का काफी महत्व है.

author-image
Aditi Sharma
एडिट
New Update
Pitru Paksha 2019: गया में ही क्यों किया जाता है पितरों का श्राद्ध, जानें
Advertisment

पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है. भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिन पितृ पक्ष कहे जाते हैं. श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और 17 दिन का कर्मकांड करते हैं. इस दौरान पूर्वजों की मृत्युतिथि पर श्राद्ध किया जाता. पौराणिक मान्यता है कि पितृपक्ष में पूर्वजों को याद कर किया जाने वाला पिंडदान सीधे उन तक पहुंचता है और उन्हें सीधे स्वर्ग तक ले जाता है.

मान्यता है कि बिहार के गया में पूर्वजों का पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसे में हिन्हुओं के लिए गया का काफी महत्व है. लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर पूर्वजों की आत्मा की शांति की कामना और पिंडदान करने के लिए गया ही क्यों जाया जाता है. क्या है इसके पीछे की कथा, आइए जानते हैं.

यह भी पढ़ें: इस्कॉन बेंगलुरू में 20 लाख के गहने और 3 लाख रुपये के कपड़े पहनेंगे कृष्ण और राधा

गया में ही क्यों किया जाता है पिंडदान?

दरअसल सृष्टि की रचना करते वक्त ब्रह्माजी असुर कुल में एक असुर की रचना कर बैठे जिसका नाम गया था. हालांकि उसमें असुरों की कोई प्रवृत्ति नहीं थी, वो हमेशा देवताओं की अराधना में लीन रहता था. एक दिन उसने सोचा कि असुर कुल में पैदा होने की वजह से शायद उसका सम्मान कभी नहीं किया जाएगा तो क्यों न इतना पूण्य कमा लें कि उन्हें स्वर्ग मिले. ऐसे में वो विष्णु की अराधना में जुट गया. भगवान उसकी भक्ती से प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि जो भी उसे देखगा उसके सारे कष्ट दूर हो जाएगा. भगवान से वरदान पाकर गयासुर घूम-घूम कर लोगों के पाप दूर करने लगा.

कोई कितना भी पड़ा पापी क्यों न हो, जिसपर भी गयासुर की नजर पड़ जाती उसके सारे पाप नष्ट हो जाते. ऐसे में यमराज चिंता में पड़ गए. उन्होंने ब्रह्माजी से कहा कि गयासुर उनके उस विधान को खराब कर रहा है जिसमें उन्होंने सभी को उसके कर्म के अनुसार फल भोगने की व्यवस्था दी है.

ऐसे में ब्रह्माजी ने योजना बनाई और गयासुर से कहा कि तुम्हारी पीठ पवित्र है, इसलिए मैं समस्त देवताओं के साथ बैठकर तुमारी पीठ पर यज्ञ करूंगा. हालांकि ऐसा करने पर भी गयासुर अचल नहीं हुआ तो स्वंय विष्णु जी भी गयासुर की पीठ पर आ बैठे. गयासुर ने विष्णु जी का मान रखते हुए अचल होने का फैसला लिया, लेकिन साथ में उसने भगवान विष्णु से वरदान मांगा कि उसे पत्थर की शिला बना कर वहीं स्थापित कर दिया जाए. इसी के साथ गयासुर ने ये भी वरदान मांगा कि भगवान विष्णु सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें और यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थस्थल बन जाए. भगवान विष्णु गयासुर की भावना से काफी प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया कि जहां गया स्थापित हुआ वहां पितरों के श्राद्ध-तर्पण आदि करने से मृत आत्माओं को पीड़ा से मुक्ति मिलेगी.

यह भी पढ़ें: पितृपक्ष 2019: जानिए क्या है इस साल श्राद्ध की सही तिथियां और पितरों का तर्पण पूरा करने के लिए कैसे करें श्राद्ध

गया में भगवान राम ने भी किया था पिंडदान

ऐसी मान्यताएं हैं कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए यहीं आये थे और यही कारण है की आज पूरी दुनिया अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए आती है.

Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो

Gaya shraddh Pitru Paksha 2019 Shraddh 2019 Pitru Paksha Importance
Advertisment
Advertisment
Advertisment