Pitru Paksha 2022 Moksh Prapti Kund: Pitru Paksha 2022 Moksh Prapti Kund: जो लोग पितृ प्रकोप से ग्रसित हैं या फिर प्रेत बाधा के कारण कष्ट में हैं, उन लोगों के लिए काशी का यह कुंड किसी अमृत स्थान से कम नहीं. आज हम आपको अपने इस लेख में काशी के एक ऐसे कुंड के बारे में बताने जा रहे हैं जहां श्राद्ध कर्म करने से व्यक्ति को दोनों ही परेशानियों से निजात मिल जाती है. माना जाता है कि इस स्थान पर त्रिपिंडी श्राद्ध करने से न सिर्फ पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है अपितु भटकती आत्मा भी शांत हो जाती है.
कई बार ऐसा होता है कि घर के किसी व्यक्ति की मृत्यु असाधारण रूप में होती है. जिसके पीछे का कारण या तो कोई दुर्घटना होती है या फिर कोई अकल्पनीय अदृश्य पीड़ा जिसे सरल शब्दों में प्रेत बाधा बोलते हैं. इन दोनों ही परिस्थितियों में मरने वाला व्यक्ति अकाल मृत्यु का भागी बनता है. ऐसे में या तो वेह व्यक्ति मृत्यु के पश्चात एक नाराज पितृ का रूप धारण करता है या फिर भटकती आत्मा का.
इन दोनों ही रूपों में वह अपने ही परिवार को कष्ट पहुंचाने लगता है. इस अवस्था में कहा जाता है कि अगर काशी के पिशाच मोचन कुंड में उस मृत व्यक्ति का विधिवत श्राद्ध किया जाए तो न सिर्फ उस मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है अपितु परिवार पर बरस रहा उस पितृ का क्रोध भी नष्ट हो जाता है.
यही कारण है कि हर साल पितृपक्ष के दौरान काशी में लोगों का जमावड़ा देखने को मिलता है. यहां पहुंचे लोग पूर्वजों की भटकती आत्माओं के लिए खास अनुष्ठान कराते हैं. बता दें कि, मोक्ष नगरी काशी में चेतगंज थाने के पास एक कुंड है जिसे 'पिशाच मोचन कुंड' के नाम से जाना जाता है. मान्यताओं के अनुसार, पिशाच मोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से होने वाली व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है.
गरुड़ पुराण में भी पिशाच मोचन कुंड के महत्व के बारे में उल्लेख मिलता है. गरुड़ पुराण के अनुसार, यह पिंड इस धरा पर तब से है जब से पृथ्वी पर मां गंगा का भी आगमन नहीं हुआ था. अतृप्त आत्माओं और पितरों के श्राद्ध के लिए यह स्थान एक वरदान के समान है. माना जाता है कि पिशाच मोचन कुंड एक मात्र ऐसा कुंड है जहां त्रिपिंडी श्राद्ध करने से अतृप्त पितृ या आत्मा को मुक्ति मिल जाती है.
दरअसल, त्रिपिंडी का अर्थ है तीन पिंड. सरल शब्दों में कहें तो आत्माएं 3 प्रकार की होती हैं: तामसी, राजसी और सात्विक. अर्थात जो आत्मा जैसी होती है उसे उसी लोक में इस त्रिपिंडी श्राद्ध के माध्यम से भेजा जाता है. यह इसीलिए संभव है क्योंकि इस्थान से महादेव का वरदान भी जुड़ा हुआ है.
प्रचलित कथाओं के मुताबिक, स्वयं महादेव का इस स्थान के लिए यह आशीर्वाद था कि जो भी व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध कर्म इस कुंड पर करेगा उसे सभी बाधाओं से सदैव के लिए मुक्ति मिल जाएगी. एक और किंवदंती के मुताबिक, इस कुंड के पास एक पीपल का पेड़ है, विशेष बात यह है कि पीपल के इस पेड़ पर अतृप्त आत्माओं को बैठाया जाता है. जैसे ही ब्राह्मण द्वारा पूजा संपन्न होती है और पितृ का श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान निर्विघ्न पोर हो जाता है वैसे ही मृतक की आत्मा को प्रेत योनी से मुक्ति मिल जाती है.