Pitru Paksha 2022 Places For Shraddh Karm: हिन्दू धर्म के अनुसार, श्राद्ध कर्म करने से न सिर्फ पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है बल्कि श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति के भी सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं. शास्त्रों में पितृ पक्ष से जुड़ी कई विशेष बातें बताई गई हैं. जिनमें श्राद्ध के महत्व से लेकर उसके नियमों तक और पूजा विधि से लेकर ब्राह्मण भोज तक का विस्तार से वर्णन मिलता है. इसी कड़ी में आज हम आपको उन स्थानों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें श्राद्ध कर्म हेतु शास्त्रों में सर्व पवित्र बताया गया है.
बोधगया
बिहार के मगध में स्थित बोधगया श्राद्ध कर्म के सबसे प्राचीन और पवित्र स्थानों में से एक है. यह स्थान फल्गु नदी के तट पर बसा हुआ है. हर साल इस स्थान पर अपने पूर्वजों का पिंडदान करने लाखों की तादात में लोग पहुंचते हैं. बता दें कि, विष्णु और वायु पुराण में इस स्थान को मोक्ष की भूमि बताया गया है. पुराणों के अनुसार, स्वयं भगवान विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में विराजमान हैं. जो भी व्यक्ति बोधगया में पिंडदान करता है उसके 108 कुल और 7 पीढ़ियों तक का उद्धार हो जाता है.
माना जाता है कि परम पिता ब्रह्मा जी ने अपने पूर्वजों का पिंडदान बोधगया में ही किया था. यहां तक कि प्रभु श्री राम ने भी अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध कर्म भी इसी स्थान पर किया था. धर्म जानकारों के मुताबिक, इस स्थान पर पहले 360 वेदियां हुआ करती थीं लेकिन समय परिवर्तन होने के साथ साथ अब 48 ही रह गई हैं.
इसके अलावा, बोधगया में ही अक्षयवट नामक एक स्थान मौजूद है जहां पितरों के निमित्त दान करने का भी विधान है. यहां किया गया दान अक्षय फल की प्राप्ति के मार्ग खोल देता है. इसके साथ ही, बता दें कि यह वाही स्थान है जहां बोधि नामक पेड़ के नीचे महात्मा गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था.
काशी
शिव की नगरी धर्म और आध्यात्म के साथ साथ मोक्ष के लिए भी जानी जाती है. पितरों को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए काशी में श्राद्ध एवं पिंडदान करने की परंपरा है. शास्त्रों के अनुसार, पितरों की आत्मा तीन योनियों में जाती है: तामसी, राजसी और सात्विक. जो आत्मा जैसी होती है उसे वही योनी प्राप्त होती है. ऐसे में प्रेत योनी से मुक्ति के लिए सिर्फ और सिर्फ काशी का पिशाच मोचन कुंड ही एक मात्र मार्ग है.
यहां मिट्टी के 3 कलश स्थापित कर भगवान शिव, ब्रह्म देव और श्री हरी विष्णु के प्रतीक के रूप में काले, लाल और सफेद रंग के झंडे लगाए जाते हैं. इसके बाद श्राद्ध कर्म किया जाता है. माना जाता है कि जो भी व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध इस पिशाच मोचन कुंड में आकर करता है उसके घर हमेशा खुशहाली बनी रहती है और घर का हर एक व्यक्ति उन्नति कर सफलता हासिल करने में सक्षम बनता है.
हरिद्वार
हरिद्वार की नारायणी शिला पूर्वजों के पिंडदान के लिए बहुचर्चित है. यहां पर किया गया पिंडदान व्यक्ति को पितरों की विशेष कृपा और सौभाग्य का भागी बनाता है. इसके अतिरिक्त, उस व्यक्ति के जीवन में हमेशा शान्ति का वास होता है और भगवान की कृपा भी उसपर बरसती रहती है.
कुरुक्षेत्र
जिन लोगों की अकाल मृत्यु हुई होती है उनके श्राद्ध के लिए कुरुक्षेत्र उत्तम स्थान माना जाता है. असल में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में पिहोवा तीर्थ नामक एक स्थान है जहां अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध करना पुण्य फलदायी है. यह स्थान सरस्वती नदी के किनारे ही स्थित है. ऐसा माना जाता है कि यहां श्राद्ध या पिंडदान करने वाले को श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है. इस स्थान का महाभारत से भी गहरा नाता है.
महाभारत के समय में धर्मराज युधिष्ठिर ने युद्ध में मारे गए अपने परिजनों का श्राद्ध और पिंडदान पिहोवा तीर्थ पर ही किया था. वामन पुराण में इस जगह के बारे में उल्लेख मिलता है कि पुरातन काल में राजा पृथु ने अपने वंशज राजा वेन का श्राद्ध यहीं पर किया था, जिसके बाद ही राजा वेन की तृप्ति हुई थी.