बद्रीनाथ धाम के कपाट आज यानी रविवार को बंद हो गया. शाम 5.13 बजे छह महीने की अवधि के लिए बद्रीनाथ धान के कपाट को बंद कर दिया गया. बद्रीनाथ शीतकाल में बर्फ से ढक जाती है. इसलिए छह महीने के लिए बंद कर दिया जाता है. हालांकि यहां पर सुरक्षाकर्मी तैनात रहते हैं. मान्यता है कि कपाट बंद होने पर शीतकाल में जब बद्रीनाथ में चारों ओर बर्फ ही बर्फ होती है, तो स्वर्ग से उतर पर देवता भगवान बदरी विशाल की पूजा अर्चना और दर्शन करते हैं.
रविवार को भगवान बद्रीनाथ के कपाट बंद होने से पहले शनिवार को मंदिर और सिंहद्वार को हजारों फूलों से सजाया जाता है. आकाश से भी बर्फ की हल्की पुष्प वर्षा हुई. कपाट बंद करने से पहले भगवान का पुष्प श्रृंगार किया गया. इसके बाद उनकी पूजा अर्चना की गई.
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इससे पहले शनिवार को भगवान को भोग लगाने के बाद मंदिर के मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नम्बूदरी जी ने भगवती लक्ष्मी को भगवान के सानिध्य में विराजने का न्यौता दिया. रविवार को कपाट बंद होने से पहले भगवती लक्ष्मी भगवान के सानिध्य विराजीं.
भगवान के सानिध्य मां लक्ष्मी को विराजमान कराने की अपनी एक कहानी है. मान्यता है कि मां लक्ष्मी को भगवान के पास बैठाने के लिए मुख्य पुजारी (जो भी होता है) रावल जी स्त्री का वेश धारण करके लक्ष्मी मंदिर जाते हैं और मां लक्ष्मी जी के विग्रह को अपने साथ लगाकर भगवान बद्रीनाथ के समीप स्थापित करते हैं.
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बद्रीनाथ के कपाट बंद होने के दौरान तमाम परंपरा का पालन किया जाता है. कपाट बंद होने से पहले भगवान बद्रीनाथ को घी से लेप किया गा कंबल ओढ़ाया जाता है. भारत के अंतिम गांव माणा की लड़की इसे एक दिन में बुनती हैं और घी का लेप लगाकर भगवान को ओढ़ाया जाता है. इसके पीछे वजह यह है कि शीतकाल में ठंड बहुत होती है और भगवान को ठंड ना लगे इसलिए इसे ओढ़ाया जाता है. यह एक आत्मीय परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है.