जून माह का पहला प्रदोष व्रत 7 जून, सोमवार को पड़ रहा है. प्रदोष व्रत में भगवान शिवजी की पूजा अर्चना की जाती है. मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन भगवान भोलेनाथ की विधिवत अराधना करने से भक्तों के सभी दूख दूर होते हैं और उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती हैं. प्रदोष व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि और भगवान शिव का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है. प्रदोष व्रत में महादेव की पूजा करना बेहद ही लाभकारी माना जाता है. सोमवार के दिन प्रदोष व्रत होने से चन्द्रमा आपको विशेष फल देता है. इसे करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
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प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ माह का प्रदोष व्रत- 07 जून, सोमवार
ज्येष्ठ माह कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि प्रारंभ- 07 जून सुबह 08 बजकर 48 मिनट से
ज्येष्ठ माह कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि समाप्त- 08 जून सुबह 11 बजकर 24 मिनट तक
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
प्रदोष व्रत के दिन प्रात:काल स्नान कर के साफ वस्त्र धारण कर लें. इसके बाद पूजा घर या मंदिर को गंगाजल से शुद्ध कर के भगवान शिव की मूर्ति स्थापित कर लें. . हाथ में फूल और गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प लें. अब महादेव को गंगाजल से अभिषेक करवाएं. फूल, धतूरा, दूध, अक्षत, चंदन, धूप और भांग अर्पित करें. इसके बाद भगवान को भोग लगाएं। इस दौरान ओम नम: शिवाय: मंत्र का जाप करते रहें। फिर शिव चालीसा के पाठ के बाद भगवान शिव की आरती करें. दिन भर शिव मंत्र का जाप करें. आप 'ओम नम: शिवाय' या 'ऊं त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम' मंत्र का जाप कर सकते हैं.
प्रदोष व्रत करते समय इन बातों का रखें विशेष ध्यान
1. प्रातकाल: (सुबह के समय) उठकर गुलाबी या हल्के लाल रंग के कपड़े पहनें.
2. चांदी या तांबे के बर्तन से शुद्ध शहद भगवान शिव के शिवलिंग पर अर्पित करें.
3. इसके बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाएं.
4. 108 बार सर्वसिद्धि प्रदाये नमः मंत्र का जाप करें.
प्रदोष व्रत करने से मिलेगा ये लाभ
- जमीन जायदाद की समस्या से जल्द छुटकारा मिल सकता है.
- इस व्रत को करने से मनचाहा वर-वधू की प्राप्ति हो सकती है.
- धन की कमी से मुक्ति मिल सकती है.
- इस व्रत को करने से हर तरह के रोग दूर हो जाते हैं.
- प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त की जा सकती है.
- प्रदोष करने से वैवाहिक जीवन में आ रही सारी दिक्कतें दूर हो जाती है
प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक, एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी. उसके पति का स्वर्गवास हो गया था. उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी. भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी. एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला. ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई. वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था. शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था. राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा.
एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई. अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई. उन्हें भी राजकुमार भा गया. कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए. उन्होंने वैसा ही किया.
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी. उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा.
राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया. ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दुखों को भी दूर करते हैं. सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए.
Source : News Nation Bureau