Pradosh Vrat Katha: शिव जी से मिलेगा मनचाहा वरदान, जब प्रदोष व्रत पर पढ़ेंगे ये कथा!

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का खास महत्व होता है. पंचांग के अनुसार हर माह की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है. इस दिन देवों के देव महादेव की पूजा का विधान है.

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Sourabh Dubey
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pradosh_vrat( Photo Credit : social media)

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Pradosh Vrat Katha: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का खास महत्व होता है. पंचांग के अनुसार हर माह की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है. इस दिन देवों के देव महादेव की पूजा का विधान है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विधिपूर्वक शिव जी की पूजा करने से भगवान शिव खुश होकर जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. वहीं प्रदोष व्रत की पूजा इस कथा के बिना अधूरा माना जाता है. इस दिन ये कथा पढ़ना बेहद शुभ माना जाता है. इससे भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न होते हैं. आइए यहां पढ़ें प्रदोष व्रत की पूरी कथा. 

प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha)

प्रदोष व्रत हिन्दू धर्म में भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है. इस व्रत का महत्व शिव पुराण में विस्तार से वर्णित है. एक सुपरण राजा था जिसका नाम चंद्रसेन था.  चंद्रसेन अपने पूर्वजों की तरह धर्मवत्सल था और उसका दिन दिन धर्म के पथ पर चलने का नियमित अनुष्ठान होता था. 

एक दिन चंद्रसेन की राजमहल में एक ब्राह्मण व्रत से गुजर रहा था. ब्राह्मण ने राजा से पूछा, "राजन, तुम भगवान शिव के प्रेमी हो, क्या तुम प्रदोष व्रत का आचरण करते हो?" राजा ने हां कहकर कहा, "हां, मैं शिव भक्त हूँ।" ब्राह्मण ने उससे व्रत की कथा सुनाने का आग्रह किया. 

कथा की शुरुआत हुई एक सुन्दर नगरी मंदारपुर में. यहीं पर एक सुपरण राजा विरूपाक्ष नामक राजा रहता था. वह बड़े भक्त और शिव प्रेमी थे. उनकी पत्नी का नाम बनमती था, जो भी भगवान शिव की भक्त थीं. एक दिन, विरूपाक्ष ने अपनी पत्नी के साथ मंदारपुर के एक शिव मंदिर में जाकर पूजा अर्चना की. 

वहां पर एक ब्राह्मण था जिसने राजा को प्रदोष व्रत के बारे में बताया और उन्हें इसे आचरण करने की सलाह दी.  विरूपाक्ष ने भी इसे अच्छा माना और अपने साथी ब्राह्मण के साथ मिलकर इसे आरंभ किया. 

प्रदोष व्रत के दिन रात्रि के समय, राजा और रानी मिलकर शिव मंदिर में पूजा करने गए. उन्होंने शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धातक, धूप आदि से पूजा की और भगवान शिव की कृपा का आशीर्वाद मांगा. व्रत के समापन के समय भगवान शिव ने राजा-रानी को दर्शन किया और उन्हें अपने आशीर्वाद से वरदान दिया. 

इसके बाद से ही प्रदोष व्रत को लोग भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का साधन मानते हैं और इसे नियमित रूप से आचरण करते हैं.  इस व्रत के आचरण से भक्त भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा और विश्वास को मजबूत करते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन को सुखी और शांतिपूर्ण बनाए रखते हैं. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)

Source : News Nation Bureau

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