आज पूरे देश में धूम-धाम से राखी का त्योहार मनाया जा रहा है। इस मौक़े पर बहनें अपनी भाई के कलाई पर राखी बांधती है और बदले में उनसे ताउम्र रक्षा करने का वादा लेती हैं। हालांकि बदलते परिवेश के साथ राखी के मौक़े पर भाइयों द्वारा बहनों को उपहार देने का तरीका भी खूब चर्चा में रहा है। आज के दौर में जब पूरा विश्व डिजीटलीकरण की तरफ तेजी से अग्रसर है तो राखी जैसा पुरातन पर्व भी इस रेस में कंधे से कंधा मिलाकर हिस्सा ले रही है।
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हालांकि, भारत में रक्षाबंधन का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। राखी से जुड़ी एक नहीं बल्कि कई कहानियां हैं और ये सभी अपने आप में काफी विविध हैं। रक्षाबंधन मुख्य तौर पर हिन्दुओं का त्योहार माना जाता है, जो श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। पर आपको यह जान कर खुशी होगी कि रक्षाबंधन के इतिहास में मुस्लिम से लेकर वो लोग भी शामिल हैं जो सगे भाई-बहन नहीं थे।
रक्षाबंधन का इतिहास राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बाँधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आयेगा। राखी के साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है। कहते हैं, मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ने में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की।
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महाभारत में भी इस बात का उल्लेख है कि जब ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिये राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर आपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं। इस समय द्रौपदी द्वारा कृष्ण को तथा कुंती द्वारा अभिमन्यु को राखी बाँधने के कई उल्लेख मिलते हैं।
महाभारत में ही रक्षाबन्धन से सम्बन्धित कृष्ण और द्रौपदी का एक और किस्सा भी मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी(छोटी उंगली) में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई।
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हमारे देश में किसी भी धर्म के त्योहार का इतिहास इतना ही समृद्ध है। इनमें शामिल होने वाले लोगों की एकता और मिठास ही इस देश की संस्कृतिक विविधता का निर्माण करती है। यहां खुशियां किसी एक बहुसंख्यक धर्म की मौहताज नहीं है और यह त्योहार ही है जो सभी दीवारें तोड़ कर हमें प्यार और सम्मान से एक दूसरे के साथ आना सिखाते हैं।
Source : News Nation Bureau