इस साल भाई-बहन का त्यौहार रक्षाबंधन 22 अगस्त, रविवार (Raksha Bandhan 2021) के दिन मनाया जाएगा. . हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस त्यौहार में बहनें अपने भाई की कलाई पर रेशम के डोर से बनी राखी को बांधती हैं. वहीं भाई उनकी ताउम्र रक्षा करने का वचन देता है. राखी सिर्फ एक धागा नहीं बल्कि बहन का विश्वास होता है कि उसका भाई ऐसा ही ताउम्र साथ रहेगा. राखी के दिन बहन अपने भाईयों को तिलक भी लगाती हैं. इसके साथ ही तिलक पर चावल लगाने का भी रिवाज हैं.
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शास्त्रों में कुमकुम के तिलक और चावल का अत्याधिक महत्व हैं. यह तिलक विजय, पराक्रम, सम्मान, श्रेष्ठता और वर्चस्व का प्रतीक है. तिलक मस्तक के बीच में लगाया जाता है. यह स्थान छठी इंद्री का है. इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि अगर शुभ भाव से मस्तक के इस स्थान पर तिलक के माध्यम से दबाव बनाया जाए तो स्मरण शक्ति, निर्णय लेने की क्षमता, बौद्धिकता, तार्किकता, साहस और बल में वृद्धि होती है.
कहते हैं चावल लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. शास्त्रों के मुताबिक, चावल को हविष्य यानी हवन में देवताओं को चढ़ाया जाने वाला शुद्ध अन्न माना जाता है. कच्चे चावल का तिलक में प्रयोग सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला होता है. चावल से हमारे आसपास की नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है.
रक्षाबंधन शुभ मुहूर्त-
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 21 अगस्त 2021 की शाम 03:45 मिनट तक
पूर्णिमा तिथि समापन: 22 अगस्त 2021 की शाम 05:58 मिनट तक
शुभ मुहूर्त: सुबह 05:50 मिनट से शाम 06:03 मिनट तक
रक्षा बंधन के लिए दोपहर में शुभ मुहूर्त: 01:44 से 04:23 मिनट तक
रक्षा बंधन की समयावधि: 12 घंटे 11 मिनट
रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक कथाएं-
पौराणिक कथा के अनुसार, देवासुर संग्राम में जाते समय इंद्र को उनकी पत्नी शची ने रक्षासूत्र बांधा था. मध्यकालीन इतिहास से जुड़ी एक कहानी है कि मेवाड़ की महारानी कर्णावती के राज्य पर जब गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने हमला किया था तो महारानी ने मुगल बादशाह हुमायूं को भाई मानते हुए उनको राखी भेजकर उनसे मदद मांगी थी. रानी कर्णावती ने हालांकि जौहर कर लिया लेकिन हुमायूं ने उनके राज्य की रक्षा कर उनके बेटे को सौंप दी थी. इसी कहानी के परिप्रेक्ष्य में भाई-बहन के रिश्तों के पर्व के तौर पर रक्षाबंधन मनाया जाता है.
पूर्व नौकरशाह और गणित व ज्योतिष विद्या के जानकार अनिल जैन कहते हैं कि रक्षा-सूत्र बांधने की कथा पुराणों में वर्णित है, लेकिन भारतीय सिनेमा ने इसे भाई-बहन के रिश्तों के पर्व के तौर पर ज्यादा प्रचारित किया, जिसके कारण रक्षाबंधन आज भाई-बहन के पर्व के रूप में प्रचलित है.
लेकिन एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवराज इंद्र को उनकी पत्नी शची ने देवासुर संग्राम में जाते समय उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था, जिससे उस संग्राम में उनकी रक्षा हुई और वह विजय प्राप्त कर लौटे थे. इस प्रकार, पत्नी इस अवसर पर अपने पति को राखी यानी रक्षासूत्र बांधती है.
भाई-बहन के संबंध में भी एक पौराणिक कथा है कि एक बार बलि के आग्रह पर भगवान विष्णु ने उनके साथ रहना स्वीकार कर लिया है. इसके बाद लक्ष्मी वेश बदलकर बलि के पास गईं और उनकी कलाई पर राखी बांधी जिसके बदले में बलि ने उनसे मनचाहा उपहार मांगने को कहा. लक्ष्मी ने उपहार के रूप में भगवान विष्णु को मांग लिया.
एक पौराणिक कथा भगवान कृष्ण और द्रोपदी से भी जुड़ी है. एक बार भगवान कृष्ण की अंगुली कट गई थी जिसे देख द्रोपदी ने बिना देर किए अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवान की अंगुली को बांध दिया. भगवान द्रोपदी के इस कार्य से काफी द्रवित हुए. कहा जाता है कि भगवान ने इसके बदले में द्रोपदी की रक्षा तब की थी जब उसका चीरहरण हो रहा था.
श्रावणी पूर्णिमा पर कहीं-कहीं पुरोहित ब्राह्मण व गुरु भी रक्षा-सूत्र बांधते हैं. रक्षासूत्र बांधते हुए वे एक मंत्र पढ़ते हैं-रक्षासूत्र का मंत्र है- 'येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल.'
अर्थात दानवों के महाबलशाली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो. इस प्रकार, पुरोहित अपने यजमान को रक्षासूत्र बांधकर उनको धर्म के पथपर प्रेरित करने की कामना करते हैं.