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Ram Raksha Stotra: रामरक्षा स्त्रोत का करें पाठ, हर क्षेत्र में मिलेगी बेहिसाब सफलता, अधूरी इच्छाएं भी होंगी पूरी

Ram Raksha Stotra: आइए जानते हैं रामरक्षा स्त्रोत के पाठ करने से क्या लाभ मिलता है. साथ ही जानेंगे पाठ करने का शुभ मुहूर्त और उसकी विधि.

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Sushma Pandey
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Ram Raksha Stotra

Ram Raksha Stotra( Photo Credit : news nation)

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Ram Raksha Stotra: आज शुभ मुहूर्त में अयोध्या के भव्य राम मंदिर के गर्भ गृह में रामलला विराजमान हो चुके हैं.  प्रभु राम के विग्रह की आज गर्भगृह में स्थापना हो चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुभ मुहूर्त में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की गई. इस दौरान पूरा देश श्रीराम के नारों से गूंज उठी. ऐसे में ज्योतिष की मानें तो अगर आप रामरक्षा स्त्रोत का संपूर्ण पाठ करेंगे तो इससे आपको हर क्षेत्र में बेहिसाब सफलता मिलेगी. तो चलिए जानते हैं रामरक्षा स्त्रोत का संपूर्ण पाठ. 

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रामरक्षा स्त्रोत पाठ (Ram Raksha Stotra)

संपूर्ण रामरक्षा स्त्रोत पाठ

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्।

एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।

जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्।

स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्।

शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥

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कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती।

घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥

जिह्वां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित:।

स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥

करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।

मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:।

ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥

जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तक:।

पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोऽखिलं वपु: ॥९॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत्।

स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥

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पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण:।

न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्।

नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्।

य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥१३॥

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्।

अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:।

तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्।

अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥

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तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।

पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।

पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्।

रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥१९॥

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षयाशुगनिषंग सङ्गिनौ।

रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥

संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।

गच्छन्मनोरथोऽस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।

काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघूत्तम: ॥२२॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:।

जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित:।

अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥

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रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्।

स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥

रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्।

काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।

श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।

श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।

श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।

श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।

स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।

सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् ।

नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा।

पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।

कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।

आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्।

लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्।

तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे।

रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम्।

रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥

Source : News Nation Bureau

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