आज यानि 11 नवंबर को रमा एकादशी का व्रत है. हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष को रमा एकादशी मनाई जाती है. इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, रमा एकादशी पर विधि-विधान से पूजा करने पर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इसके अलावा जो भी भक्त एकादशी का व्रत सच्चे मन से करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.
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पूजा मुहूर्त
- एकादशी तिथि आरंभ- 11 नवंबर सुबह 03 बजकर 22 मिनट से.
- एकादशी तिथि समाप्त- 12 नवंबर 12 बजकर 40 मिनट तक.
- एकादशी व्रत पारण तिथि- 12 नवंबर प्रात: 06 बजकर 42 मिनट से 08 बजकर 51 मिनट तक.
पूजा विधि
एकादशी के दिन सुबह स्नान करें और उसके बाद पूजा शुरू करें. पूजा में धूप, तुलसी के पत्तों, दीप, नैवेद्य, फूल और फल का आदि चीजों का ध्यान रखें . इस दिन भगवान विष्णु का पीले वस्त्र और फूलों से श्रृंगार करना चाहिए. एकादशी व्रत का पारण द्वादशी की तिथि पर करना चाहिए. मान्यता है कि मां लक्ष्मी के नाम रमा पर ही रमा एकादशी मनाया जाता है. एकादशी का व्रत विधि-विधान करने से सभी प्रकार की आर्थिक दिक्कतें दूर होती हैं.
रमा एकादशी व्रत कथा-
पौराणिक कथा के मुताबिक, एक नगर में मुचुकंद नाम के एक प्रतापी राजा थे. उनकी चंद्रभागा नाम की एक पुत्री थी. राजा ने अपनी बेटी का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दिया. शोभन एक समय बिना खाए नहीं रह सकता था. शोभन एक बार कार्तिक मास के महीने में अपनी पत्नी के साथ ससुराल आया, तभी रमा एकादशी व्रत पड़ा. चंद्रभागा के गृह राज्य में सभी रमा एकादशी का नियम पूर्वक व्रत रखते थे और ऐसा ही करने के लिए शोभन से भी कहा गया.
शोभन इस बात को लेकर परेशान हो गया कि वह एक पल भी भूखा नहीं रह सकता है तो वह रमा एकादशी का व्रत कैसे करेगा. वह इसी परेशानी के साथ पत्नी के पास गया और उपाय बताने के लिए कहा. चंद्रभागा ने कहा कि अगर ऐसा है तो आपको राज्य के बाहर जाना पड़ेगा. क्योंकि राज्य में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो इस व्रत नियम का पालन न करता हो. यहां तक कि इस दिन राज्य के जीव-जंतु भी भोजन नहीं करते हैं.
आखिरकार शोभन को रमा एकादशी उपवास रखना पड़ा, लेकिन पारण करने से पहले उसकी मृत्यु हो गयी. चंद्रभागा ने पति के साथ खुद को सती नहीं किया और पिता के यहां रहने लगी. उधर एकादशी व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ. एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचे. उन्होंने सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखते ही पहचान लिया.
ब्राह्मणों को देखकर शोभन सिंहासन से उठे और पूछा कि यह सब कैसे हुआ. तीर्थ यात्रा से लौटकर ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को यह बात बताई. चंद्रभागा बहुत खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो उठी. वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची. चंद्रभागा मंदरांचल पर्वत पर पति शोभन के पास पहुंची. अपने एकादशी व्रतों के पुण्य का फल शोभन को देते हुए उसके सिंहासन व राज्य को चिरकाल के लिये स्थिर कर दिया. तभी से मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को रखता है वह ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
Source : News Nation Bureau