इस्लाम में रोजा का महत्व बहुत उच्च माना जाता है. रोजा एक प्रकार की तपस्या है जिसमें मुसलमान अपने आत्म-निग्रह को प्रकट करते हैं. इस्लामी धर्मग्रंथों में, रोजा को धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति का एक महत्वपूर्ण माध्यम माना जाता है. इस्लाम में, महत्वपूर्ण रोजों में रमजान का महीना सबसे महत्वपूर्ण है. रमजान के महीने में मुसलमान सवा महीने तक दिन में भोजन और पानी का सेवन नहीं करते. इसके अलावा, अल्लाह के सामने मुसलमान ईमानदार रहने का संकल्प लेते हैं. बता दें कि, रोजा पाकिस्तान, बांग्लादेश, भारत समेत दुनियाभर के कई इस्लामी देशों में किया जाता है.
रोजा के माध्यम से मुसलमानों को अपने दिल की शुद्धि, सहानुभूति, और धार्मिकता का अनुभव होता है. इसलिए, इस्लाम में रोजा को धार्मिक साधना का एक महत्वपूर्ण पहलू माना जाता है.
इस्लामिक कैलेंडर के पवित्र महीने में मुसलमानों के उपवास के नियम निम्नलिखित हैं:
रोजा रखना: इस माह में मुसलमानों को सवेरे से सूरज डूबने तक भोजन और पानी की अत्यंत संक्षिप्त समयावधि में रखना होता है. इसे 'रोजा' कहा जाता है.
ध्यान और ईमानदारी: रोजा रखते समय मुसलमानों को अल्लाह की ओर से शुभकामनाओं को स्वीकार करने, ध्यान, शांति, और धार्मिकता का अनुभव करने की आदत डालनी चाहिए.
अपनी आदतों का पालन करें: रोजा रखते समय अपनी आदतों और विचारों का पालन करना चाहिए, जैसे कि ईमानदारी, सच्चाई, और सच्चे और नेक काम करना.
अन्यथा आहार की सीमा: रोजा रखने वाले व्यक्तियों को सूर्यास्त के पहले और उसके बाद की समयावधि में भोजन करने की अनुमति नहीं होती है.
दान और चारित्रिक सेवा: इस माह में दान और चारित्रिक सेवा को महत्व दिया जाता है. लोग गरीबों और बेकारों की मदद करते हैं और अल्लाह के प्रति अपनी सेवाभावना को मजबूत करते हैं.
रमजान के खास इबादत: इस माह में अल्लाह को याद किया जात है. लोगों को रोजा रखते समय नमाज़, कुरान की तिलावत, और अन्य धार्मिक क्रियाएं भी करनी चाहिए.
Source : News Nation Bureau