रवि प्रदोष व्रत (Ravi Pradosh Vrat): आज 30 अगस्त को रवि प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है. रविवार को पड़ने के कारण इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाता है. बताया जाता है कि प्रदोष व्रत का महत्व दिन के हिसाब से अलग-अलग होता है. भगवान शंकर को समर्पित इस व्रत पर महिलाएं भगवान शिव (Lord Shiva) और माता पार्वती (Mata Parvati) की पूजा अर्चना करती हैं. कहा जाता है कि रवि प्रदोष व्रत करने से स्वास्थ्य बेहतर रहता है. आइए जानते हैं रवि प्रदोष व्रत की प्राचीन कथा के बारे में:
एक गांव में गरीब ब्राह्मण दंपति रहता था. उन्हें एक बेटा था. एक समय बेटा गंगा में स्नान करने गया, जहां उसे चोरों ने घेर लिया. चोर कहने लगे कि तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में बता दो तो हम तुम्हें नहीं मारेंगे. इस पर ब्राह्मण के बेटे ने कहा, हम अति दुखी हैं और हमारे पास कोई गुप्त धन नहीं है. इस पर चोरों ने पूछा- यह तुम्हारी पोटली में क्या बंधा है तो बालक ने बताया कि मां ने मेरे लिए रोटियां दी हैं. इसके बाद चोरों ने उसे छोड़ दिया.
उसके बाद बालक वहां से चलते हुए नगर में पहुंचा, जहां एक बरगद का पेड़ की छाया में वह सो गया. तभी नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए वहां आ धमके और बालक को चोर समझकर बंदी बनाकर राजा के पास ले गए. फिर राजा ने उसे काल कोठरी में डलवा दिया.
उधर, घर पर बेटा नहीं लौटा तो ब्राह्मणी को चिंता हुई. अगले दिन ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से पुत्र की कुशलता की प्रार्थना करने लगी. ब्राह्मणी के व्रत से भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए. उसी रात को भगवान शंकर उस राजा के सपने में आए और राजा को बताया कि वह बालक चोर नहीं है. उसे छोड़ दें नहीं तो राज्य का वैभव नष्ट हो जाएगा.
सुबह राजा ने उस बालक को छोड़ दिया तो बालक ने राजा को पूरी कहानी सुनाई. इस पर राजा ने सिपाहियों को भेजकर बालक के माता-पिता को राजदरबार में बुलाया. राजा ने ब्राह्मण दंपति से कहा, आप भयभीत न हों. आपका बालक निर्दोष है. राजा ने ब्राह्मण को 5 गांव दान में दिए, जिससे वह सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर सके. इस तरह भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार सुखमय जीवन व्यतीत करने लगा.
(Disclaimer: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी प्रचलित मान्यताओं पर आधारित है.)
Source : News Nation Bureau