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Saraswati Puja 2021: भगवान कृष्‍ण ने सबसे पहले की थी मां सरस्‍वती की पूजा, जानें कैसे हुआ विद्या की देवी का प्राकट्य

हर साल माघ महीने के शुक्‍ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन से ही वसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है. वसंत पंचमी के दिन पीले वस्‍त्र धारण कर मां सरस्वती की पूजा की जाती है.

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Sunil Mishra
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Vasant Panchami

Saraswati Puja 2021: भगवान कृष्‍ण ने सबसे पहले की थी सरस्‍वती पूजा( Photo Credit : File Photo)

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हर साल माघ महीने के शुक्‍ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन से ही वसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है. वसंत पंचमी के दिन पीले वस्‍त्र धारण कर मां सरस्वती की पूजा की जाती है. शुभ कार्यों के लिए वसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त माना जाता है यानी उस दिन शुभ काम करने के लिए किसी भी तरह का संकोच नहीं करना चाहिए. वसंत पंचमी को विद्यारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह-प्रवेश को पुराणों में श्रेयकर माना गया है. मां सरस्वती की पूजा का उद्देश्य जीवन में अज्ञानरुपी अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाना है. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने वसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती को वरदान देते हुए कहा था, ब्रह्मांड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्या आरम्भ के शुभ अवसर पर बड़े गौरव के साथ आपकी विशाल पूजा-अर्चना की जाएगी. मेरे वरदान से आज के बाद प्रलयपर्यन्त तक प्रत्येक कल्प में मनुष्य, मनुगण, देवता, मोक्षकामी, वसु, योगी, सिद्ध, नाग, गन्धर्व और राक्षस सभी आपकी पूजा करेंगे. पूजा के दौरान विद्वान आपकी स्तुति-पाठ करेंगे. यह वरदान देने के बाद सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्‍ण ने मां सरस्‍वती की पूजा-अर्चना की. फिर ब्रह्मा, विष्णु, शिव और इंद्र आदि देवताओं ने मां सरस्वती की पूजा की. तबसे वसंत पंचमी पर विधि-विधान से मां सरस्‍वती की पूजा का विधान शुरू हो गया.

माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने मनुष्य योनि और अन्‍य जीवों की सृष्‍टि की पर वे अपनी सृजन से संतुष्ट नहीं थे और उन्‍हें लगा कि कुछ कमी रह गई है. भगवान विष्णु की राय लेकर ब्रह्मा जी ने कमंडल से जल छिड़का, जिससे पृथ्वी पर कम्पन होने लगी. फिर एक चतुर्भुजी स्त्री के रूप में अद्भुत शक्ति प्रकट हुईं. उनके एक हाथ में वीणा थी तो दूसरा हाथ वर मुद्रा में था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थीं.

ब्रह्मा जी के अनुरोध पर देवी ने वीणा बजाया, जिससे संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई. जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया व पवन चलने से सरसराहट होने लगी. ब्रह्माजी ने सबसे पहले देवी को वाणी की देवी सरस्वती नाम दिया. मां सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और बाग्देवी सहित कई अन्‍य नामों से भी जाना जाता है. 

सत्वगुण से उत्पन्न होने के कारण मां सरस्‍वती की पूजा में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियां श्वेत वर्ण की होती हैं. जैसे श्वेत चन्दन, श्वेत वस्त्र, फूल, दही-मक्खन, सफ़ेद तिल का लड्डू, अक्षत, घृत, नारियल और इसका जल, श्रीफल, बेर इत्यादि. बसंत पंचमी के दौरान मां सरस्‍वती की पूजा करने के लिए स्नानादि के बाद श्वेत या पीला वस्‍त्र धारण करें और फिर विधिपूर्वक कलश स्थापना करें.

सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा के बाद मां सरस्‍वती की पूजा-अर्चना करें. श्वेत फूल-माला के साथ माता को सिन्दूर व शृंगार के सामान अर्पित करें. इस दिन मां के चरणों में गुलाल अर्पित करने का भी विधान है. मां सरस्‍वती की पूजा में प्रसाद के रूप में मां को पीले रंग की मिठाई या खीर का भोग लगाएं. ''ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः'' का जाप करें. 

Source : News Nation Bureau

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