Sawan 2024: ‘झूला तो पड़ गए, अम्बुआ की डार पे जी..’ सावन में गायब से हो गए झूले, जानिए पौराणिक मान्यता

आधुनिकता भरे इस दौर में चकाचौंध के चलते प्राचीन परंपराएं विलुप्त हो जा रही हैं. एक समय था जब सावन माह शुरू होते ही घर के आंगन में लगे पेड़ पर झूले पड़ जाते थे. युवतियां और महिलाएं गीतों के साथ इसका आनंद उठाती थीं. लेकिन अब ऐसा देखने को नहीं मिलता.

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Sawan 2024

Sawan 2024( Photo Credit : social media )

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Sawan 2024: आधुनिकता भरे इस दौर में चकाचौंध के चलते प्राचीन परंपराएं विलुप्त हो जा रही हैं. एक समय था जब सावन माह शुरू होते ही घर के आंगन में लगे पेड़ पर झूले पड़ जाते थे. युवतियां और महिलाएं गीतों के साथ इसका आनंद उठाती थीं. नवविवाहिताएं सावन शुरू होते ही अपने हाथों में मेंहदी रचाकर पीहर आ जाती थीं. अब बगीचों में पेड़ों पर झूले नहीं लगते. बहन-बेटियां अब झूलों पर पटेंग नहीं मारतीं.  धीरे-धीरे समय परिवर्तन के साथ ही सावन के झूले विलुप्त हो चुके हैं. समय के साथ पेड़ गायब होते गए और मल्टीस्टोरी बिल्डिंगों के बनने से आंगन का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया. ऐसे में सावन के झूले भी इतिहास बनकर हमारी परंपरा से गायब हो रहे हैं. सावन में झूला झूलने का विशेष महत्व होता है. आइए आपको बताते हैं कि सावन में झूला क्यों झूला जाता है और इसकी पौराणिक मान्यता क्या है.

सावन माह का विशेष है महत्व  

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हिंदू धर्म में सावन महीने का विशेष महत्व है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी पड़ती है. इस दिन सृष्टि के रचयिता झीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं. इसके साथ ही वे सृष्टि के संचार की बागडोर भोलेनाथ के हाथों में सौंप देते हैं. ऐसे में भोलेनाथ अपने हर भक्त की पुकार सुनते हैं. कहते हैं कि भोलेनाथ को भक्ति भाव से जल चढ़ाने से वे बेहद प्रसन्न होते हैं. इसके अलावा सावन के महीने में कांवड़ यात्रा भी शुरू होती है.

2024 में कब से शुरू होगा सावन

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इस साल 22 जुलाई 2024 से सावन महीने की शुरूआत  हो रही है. और 19 अगस्त 2024 को इसका समापन होगा. साल 2024 में सावन की शुरुआत और अंत दोनों ही सोमवार को है, जिससे इसका महत्व दोगुना हो गया है. इस बार सावन 2024 में पांच सोमवार और चार मंगला गौरी व्रत होंगे.

कैसे हुई झूला झूलने की शुरुआत

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धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो इसका बहुत महत्व बताया जाता है. सावन के महीने में देव स्थानों पर झूले डाले जाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन के महीने में भगवान श्री कृष्ण ने राधा रानी को झूला झुलाया था. तभी से यह परंपरा शुरू हुई. झूला झूलते समय भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी को याद करते हुए गीत गाए जाते हैं. भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती के लिए झूला डाला था और उन्हें अपने हाथों से झुलाया था, जिसके बाद देखा जाता है कि पति अपनी पत्नियों को झूला झुलाते हैं, ऐसा करने से आपस में प्रेम बढ़ता है और परिवार में खुशियां आती हैं. 

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Source : News Nation Bureau

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