आज शारदीय नवरात्र का दूसरा दिन है और इस दिन मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्माचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है. ब्रहमचारिणी का अर्थ होता है तप का आचरण करने वाली. माता के इस स्वरूप की पूजा करने से त्याग, तप, संयम, सदाचार में बढ़ोतरी होती है. मन शांत होता है. सफेद वस्त्र, एक हाथ में अष्टदल की माला और एक हाथ कमंडल लिए माता का स्वरूप बेहद ही मनोहर लगता है. मां सृष्टि में ऊर्जा के प्रवाह, कार्यकुशलता और आंतरिक शक्ति में विस्तार की जननी है. आइए मां ब्रह्मचारिणी के इस रूप के बारे में पूजा विधि, मंत्र और महत्व के बारे में जानते हैं.
ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है. अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली देवी मां हैं. माता ब्रह्मचारिणी को तप की देवी माना जाता है. ज्योतिषाचार्य की मानें तो हजारों वर्षों कठिन तपस्या करने के बाद माता का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा था. तपस्या के दौरान माता कई सालों तक बिना अन्न-जल ग्रहण किए रहीं. जिससे महादेव प्रसन्न हुए और उन्होंने माता पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया था.
माता का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।
इस मंत्र का जाप करते हुए आप ब्रह्मचारिणी मां की आराधना करें.
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
सुबह उठने के बाद माता का ध्यान करें. स्नान आदि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहने.
सुबह शुभ मुहूर्त में मां दुर्गा की उपासना करें.
मां की पूजा में पीले या सफेद रंग के वस्त्र का उपयोग करें.
माता का सबसे पहले पंचामृत से स्नान कराएं.
इसके बाद रोली, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें.
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में गुड़हल या कमल के फूल का ही प्रयोग करें.
माता को दूध से बनी चीजों का ही भोग लगाएं.
इसके बाद पान-सुपारी भेंट करने के बाद प्रदक्षिणा करें.
फिर कलश देवता और नवग्रह की पूजा करें.
घी और कपूर से बने दीपक से माता की आरती उतारें.
दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें.
Source : News Nation Bureau