Shani Dev Ki Aarti: हिंदू धर्म में शनिवार का दिन शनिदेव की पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है. शनिवार का दिन विशेष रूप से शनिदेव की पूजा के लिए समर्पित है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन शनिदेव की सच्ची भक्ति के साथ पूजा करने से सभी संकटों और चुनौतियों पर काबू पाया जा सकता है. इसके अलावा इस दिन आपको पूजा करने के साथ-साथ शनिदेव की आरती और शिव चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए. ऐसा कहा जाता है कि इससे शनिदेव की जमकर कृपा बरसती है. यहां पढ़ें शनिदेव की आरती और पूरी शिव चालीसा.
शनिदेव की आरती विधि (Shani Dev Ki Aarti Vidhi)
शनिवार के दिन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें. पूजा स्थान को साफ करके शनिदेव की प्रतिमा स्थापित करें. प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं. फूल, फल, धूप, दीप, नैवेद्य, चंदन, रोली और अक्षत अर्पित करें. शनिदेव की आरती करें. आरती के बाद शनि चालीसा का पाठ करें.शनिदेव से अपनी मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करें.
शनि देव की आरती (Shani Dev Ki Aarti)
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव....
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव....
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव....
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव....
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
शनि देव की जय…जय जय शनि देव महाराज…शनि देव की जय!!!
शिव चालीसा (Shiv Chalisa)
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान।।
।।चौपाई।।
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत संतन प्रतिपाला।।
भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुंडल नागफनी के।।
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुंडमाल तन छार लगाये।।
वस्त्र खाल बाघंबर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे।।
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी।।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी।।
नंदि गणेश सोहै तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे।।
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ।।
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा।।
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।।
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महं मारि गिरायउ।।
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा।।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई।।
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी।।
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं।।
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई।।
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला।।
कीन्ह दया तहं करी सहाई। नीलकंठ तब नाम कहाई।।
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा।।
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई।।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर।।
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी।।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै।।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो।।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो।।
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई।।
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी।।
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं।।
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।।
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन।।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं।।
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय।।
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शंभु सहाई।।
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी।।
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।।
पंडित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ।।
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा।।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे।।
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे।।
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी।।
।।दोहा।।
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश।।
मगसर छठि हेमंत ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण।।
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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Source : News Nation Bureau