शनिदेव की कृपा से ही मनुष्य के जीवन में खुशियां बरसती हैं और यदि शनि आप पर विपरीत प्रभाव देने लगे तो फिर आपको कोई भी नहीं बचा सकता क्योंकि शनि ज्योतिष में एक ऐसा ग्रह है जो सबसे अलग इसलिए माना जाता है क्योंकि शनि के न्याय के तराजू पर कोई छोटा बड़ा नहीं होता, न ही कोई दोस्त होता है न ही कोई दुश्मन. शनिग्रह का हमारे जीवन पर काफी प्रभाव पड़ता है.
शनिदेव जितने कठोर भगवान के तौर पर देखें जाते हैं उतने ही दयालु भी हैं. वो अपने सच्चे भक्त की सारी मन्नतें पूरी करते है और उन्हें जीवन के हर कष्ट से दूर रखते हैं. तो ऐसे में आइए हम आपको बताते हैं कि आखिर शनि देव की कृपा दृष्टि पाने के लिए क्या-क्या करना चाहिए.
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शनिदेव की पूजा-विधि-
- शनिवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पीपल के वृक्ष पर जल अर्पण करें.
- लोहे से बनी शनि देवता की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं.
- काले तिल, फूल, धूप, काला वस्त्र और तेल से शनिदेव की पूजा करें. पूजन के दौरान शनि के दस नाम कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रोतको, बभ्रु, मंद, शनैश्चर का उच्चाण करें.
- पूजन के बाद पीपल के वृक्ष की सात परिक्रमा करें और अंत में शनिदेव के मंत्रों का जाप करें. कहते हैं लगातार सात शनिवार ऐसा करने से शनि दोषों से छुटकारा पाया जा सकता है.
- पीपल के वृक्ष की जड़ में जल डालें,उसके बाद वृक्ष के पास सरसों के तेल का दीपक जलाएं.
- शनिवार के दिन पहले शिव जी की या कृष्ण जी की उपासना करें.
- किसी गरीब व्यक्ति को एक वेला का भोजन जरूर कराएं.
- सायंकाल (शाम) के समय शनि देव के मन्त्रों का जाप करें.
इन बातों का रखें ध्यान-
- अपना आचरण और व्यवहार अच्छा रखना चाहिए
- शनि देव के सामने तेल जलाएं लेकिन इसकी बर्बाद नहीं करनी चाहिए
- झूठ बोलने और गलत काम करने से बचें
शनि मंत्र-
1. ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
2. ॐ शन्नो देविर्भिष्ठयः आपो भवन्तु पीतये। सय्योंरभीस्रवन्तुनः
3. ॐ शं शनैश्चराय नमः
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दशरथकृत शनि स्तोत्र पाठ-
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते ।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिऽणाय नमोऽस्तुते ।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत ।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल: ।।
Source : News Nation Bureau