सूर्यपुत्र शनिदेव (Shanidev) के बारे में कहा जाता है कि उनका गुस्सैल स्वभाव और ग्रहदशा किसी को भी बर्बाद कर सकती है. लेकिन ऐसा हर किसी के साथ नहीं होता है. शनिदेव केवल उन्हीं लोगों को परेशान करते हैं, जिनके कर्म अच्छे नहीं होते. शनिदेव न्याय के देवता हैं. यही वजह है कि भगवान शिव ने शनिदेव को नवग्रहों में न्यायाधीश का काम सौंपा है. शनिदेव के प्रचंड प्रकोप और उनकी तीव्र दृष्टि से कोई नहीं बच सका है. मानव से लेकर दानव तक सब उनसे भय खाते हैं. लेकिन आज हम आपको शनिदेव से जुड़ा वो रहस्य बताने जा रहे हैं जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. शनिदेव सिर्फ डराते ही नहीं डरते भी हैं. आज हम आपको ऐसी पांच चीज़ों के बारे में बताएंगे जिनसे शनिदेव न सिर्फ डरते हैं बल्कि उस वजह से उनका गुस्सा भी शांत हो जाता है.
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तिल
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि शनि महाराज भगवान सूर्य और उनकी दूसरी पत्नी छाया के पुत्र हैं. बताया जाता है कि एक बार गुस्से में सूर्यदेव ने अपने ही पुत्र शनि को शाप देकर उनके घर को जला दिया था. इसके बाद सूर्य को मनाने के लिए शनि ने काले तिल से अपने पिता सूर्य की पूजा की तो वह प्रसन्न हुए इस घटना के बाद से तिल से शनिदेव और उनके पिता की पूजा होने लगी. पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि शनिदेव को तिल से भय लगता है और अगर उनके सामने तिल रखा जाए तो उनका क्रोध शांत होता है.
हनुमान जी
माना जाता है कि शनिदेव पवनपुत्र हनुमानजी से भी बहुत डरते हैं. इसलिए ऐसा कहा जाता है कि हनुमानजी के दर्शन और उनकी भक्ति करने से शनि के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं. जो लोग हनुमानजी की नियमित रूप से पूजा करते हैं, उन पर शनि की ग्रहदशा का खास प्रभाव नहीं पड़ता है. इसके साथ एक और घटना का वर्णन मिलता है जिसके अनुसार जब दशानन रावण ने सभी देवताओं को बंधी बना लिया था तब उनमें से एक शनिदेव भी थे. त्रेतायुग में जब हनुमान जी माता सीता से मिलकर और लंका दहन करके लौट रहे थे तब उन्होंने सभी देवताओं को लंकेश के बंधीगृह से छुड़ा लिया था जिसके बाद शनिदेव ने ये वरदान दिया कि जो भी कोई व्यक्ति पूरे मन से हनुमान जि कि भक्ति करेगा उसे शनि का प्रकोप नहीं सताएगा.
पीपल
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शनिदेव को पीपल से बहुत भय लगता है. इसलिए शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं. शास्त्रों में बताया गया है कि जो पिप्लाद मुनि का नाम जपेगा और पीपल की पूजा करेगा, उस पर शनिदशा का अधिक प्रभाव नहीं होगा.
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कृष्ण जी
अच्छे अच्छों को अपनी लीला से सबक सिखाने वाले भगवान श्रीकृष्ण को शनिदेव का इष्ट माना जाता है. मान्यता है कि अपने इष्ट का एक दर्शन पाने को शनिदेव ने कोकिला नाम की एक अँधेरी गुफा में कठोर तपस्या की थी. तब शनिदेव के कठोर तप से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने शनिदेव को कोयल के रूप में दर्शन दिए थे. तब शनिदेव ने कहा था कि वह अब से कृष्णजी के भक्तों को परेशान नहीं करेंगे.
पत्नी
शनि महाराज अपनी पत्नी से भय खाते हैं. इसलिए ज्योतिषशास्त्र में शनि की दशा में शनि पत्नी का नाम मंत्र जपना भी शनि का एक उपाय माना गया है. ग्रंथों में वर्णित कथाओं के अनुसार, एक समय शनि पत्नी ऋतु स्नान करके शनि महाराज के पास आई थीं. लेकिन अपने ईष्ट देव श्रीकृष्ण के ध्यान में लीन शनि महाराज ने पत्नी की ओर नहीं देखा था. क्रोधित होकर पत्नी ने शाप दे दिया था.
महादेव
पिता सूर्यदेव के कहने पर शनिदेव को बचपन में एक बार सबक सिखाने के लिए शिवजी ने उन पर प्रहार किया था. शनिदेव इससे बेहोश हो गए तो पिता के विनती करने पर शिवजी ने वापस उन्हें सही किया. तब से मान्यता है कि शनिदेव शिवजी को अपना गुरु मानकर उनसे डरने लगे. इसलिए ज्योतिष शास्त्र में शनि की गोचर दृष्टि से बचने के लिए महादेव का भजन उनकी पूजा को अनिवार्य माना जाता है.