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Sheetla Ashtami 2022: जब भगवान शिव की अर्धांगिनी बनीं मां शीतला, एक असुर को महादेव का रूप मान ले आईं अपने साथ... जानें मां शीतला का अनुपम प्रागट्य

इस बार शीतला अष्टमी 25 मार्च 2022 (Sheetala Ashtami, 25 March 2022) को पड़ रही है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि कैसे हुआ था मां शीतला का दिव्य और अनुपम प्रागट्य और कैसे मिली उन्हीं देवी होने की उपाधि.

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Gaveshna Sharma
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जब भगवान शिव की अर्धांगिनी बनीं मां शीतला, एक असुर को ले आईं अपने साथ

जब भगवान शिव की अर्धांगिनी बनीं मां शीतला, एक असुर को ले आईं अपने साथ( Photo Credit : Social Media)

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चैत्र माह (Chaitra Month 2022) के कृष्ण पक्ष की सप्तमी अष्टमी को शीतला माता का पर्व मनाया जाता है. इसे बसौड़ या बसौरा भी कहते हैं. इस बार शीतला अष्टमी 25 मार्च 2022 (Sheetala Ashtami, 25 March 2022) को पड़ रही है. शीतला अष्टमी से पहले शीतला सप्तमी को भोजन बनाकर रखा जाता है और दूसरे दिन उसी भोजन को ही खाया जाता है. इस दौरान विशेष प्रकार का भोजन बनाया जाता है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि कैसे हुआ था मां शीतला का दिव्य और अनुपम प्रागट्य (Sheetala Mata Kath) और कैसे मिली उन्हीं देवी होने की उपाधि.

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पौराणिक मान्यताओं और धर्म ग्रंथों के अनुसार, शीतला माता की पूजा से हर बीमारी दूर हो जाती है. साथी ही चेचक जैसे गंभीर रोग से भी निजात मिल जाती है. स्कंद पुराण के अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग की देवी हैं, यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी पर अभय मुद्रा में विराजमान हैं. शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं. इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणुनाशक जल (Virus or soft healing and disinfectant water) होता है.

कहते हैं यह शक्ति अवतार हैं और भगवान शिव की यह जीवनसंगिनी है. पौराणिक कथा के अनुसार माता शीतला की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से हुई थी. देवलोक से धरती पर माता शीतला अपने साथ भगवान शिक के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं थी. तब उनके हाथों में दाल के दाने भी थे. उस समय के राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने के लिए स्थान नहीं दिया तो माता क्रोधित हो गई. उस क्रोध की ज्वाला से राजा की प्रजा को लाल लाल दाने निकल आए और लोग गर्मी के मारे मरने लगे. तब राजा विराट ने माता के क्रोध को शांत करने के लिए ठंडा दूध और कच्ची लस्सी उन पर चढ़ाई. तभी से हर साल शीला अष्‍टमी पर लोग मां का आशीर्वाद पाने के लिए ठंडा भोजन माता को चढ़ाने लगे.

स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक के नाम से व्यक्त किया गया है. मान्यता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र (Sheetalashtak Stotra) की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी. इस पूजन में शुद्धता का पूर्ण ध्यान रखा जाता है. इस विशिष्ट उपासना में शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व देवी को भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग बसौड़ा उपयोग में लाया जाता है.

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