पितरों को याद करने का पर्व चल रहा है. भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते है. 16 दिनों तक हम अपने पितरों की पूजा करते हैं. उन्हें श्रद्धा के साथ याद करते हैं. मान्यता है कि इन दिनों हमारे पितर चंद्र लोक से धरती पर आते हैं और अपने वंशज के घर की छत पर रहते हैं. इसलिए पितृपक्ष में पितरों के लिए घर की छत पर भोजन रखने की परंपरा है. श्राद्ध कर्म भव्य तरीके से नहीं करना चाहिए. बहुत ही सामान्य तरीके से श्राद्ध कर्म करना चाहिए.
ज्योतिषाचार्य की मानें तो श्राद्ध पक्ष से जुड़ी और भी कई बातें है जिसे जानना चाहिए. इसे जीवन में धारण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद आप पर बनाए रखते हैं.
1. श्राद्ध पक्ष में काम, क्रोध और लोभ से बचाना चाहिए. इन तीन चीजों से श्राद्ध पक्ष में ही क्यों हमेशा बचना चाहिए. अगर हम अपने जीवन से इन तीनों चीजों से निकाल दे तो जिंदगी खुशहाल रहती है. पितर भी प्रसन्न रहते हैं.
2. श्राद्ध में ब्राह्मणों को, घर आए मेहमान और भिक्षा मांगने आए जरूरतमंद व्यक्ति को उनकी इच्छा अनुसार भोजन कराना चाहिए.
3.श्राद्ध पक्ष में घर में शांति रखनी चाहिए. घर में लड़ाई झगड़ा का माहौल नहीं होना चाहिए. घर की साफ-सफाई पर खास ध्यान रखें.
4. अपने हर रिश्ते का सम्मान करना चाहिए. जो लोग अपने रिश्ते को छोड़ दूसरों को अहमियत देते हैं उनके घर पितर अन्न ग्रहण नहीं करते हैं. इसलिए अपनों के साथ-साथ परायों को भी मान-सम्मान दें.
5. पितृ शांति के लिए तर्पण का श्रेष्ठ समय सुबह 8 से लेकर 11 बजे तक माना जाता है. इस दौरान किए गए जल से तर्पण से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है.
6. तर्पण के बाद बाकी श्राद्ध कर्म के लिए सबसे शुभ और फलदायी समय कुतपकाल होता है. यह समय हर तिथि पर सुबह 11.36 से दोपहर 12.24 तक होता है.
7. पतिरों को पश्चिम दिशा में भोग लगाए. कहा जाता है कि इस समय उनका मुख पश्चिम की ओर हो जाता है. इससे बिना कठिनाई के वो भोजन ग्रहण करते हैं.
8. हवन करने के बाद पितरों को निमित्ति पिंडदान दिया जाता है. श्राद्ध में अग्निदेव को उपस्थित देखकर राक्षस वहां से भाग जाते हैं.
9. सबसे पहले पिता को, उनके बाद दादा को उसके बाद परदादा को पिंड देना चाहिए. यहीं श्राद्ध की विधि है.
10.पिंडदान करते वक्त गायत्री मंत्र का जाप तथा सोमाय पितृमते स्वाहा का उच्चारण करना चाहिए.
Source : News Nation Bureau