Skand Shashthi 2022 Katha and Mahatva: स्कंद षष्ठी हिंदू धर्म का एक व्रत है. जो हर माह शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है. स्कंद षष्ठी के दिन भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र भगवान कुमार कार्तिकेय की पूजा करने का विधान है. कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है इसलिए इनकों समर्पित इस तिथि को स्कंद षष्ठी कहा जाता है. स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की विधिवत पूजा की जाती है. स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने और व्रत रखने से जीवन की कठिनाइयां दूर होती हैं और व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. इसके अतिरिक्त धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक स्कंद षष्ठी का व्रत संतान की उन्नति और सुखी जीवन के लिए रखा जाता है. पंचांग के मुताबिक इस महीने ये व्रत 5 जून (skand shashthi vrat 2022 date) यानी रविवार को रखा जाएगा. इस व्रत के अवसर पर आइये जानते हैं स्कन्द षष्ठी की कथा और महत्व के बारे में.
स्कंद षष्ठी की पौराणिक कथा (skanda sashti kavacham)
कुमार कार्तिकेय के जन्म का वर्णन हमें पुराणों में ही मिलता है. जब देवलोक में असुरों ने आतंक मचाया हुआ था, तब देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ा था. लगातार राक्षसों के बढ़ते आतंक को देखते हुए देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से मदद मांगी थी. भगवान ब्रह्मा ने बताया कि भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही इन असुरों का नाश होगा, परंतु उस काल च्रक्र में माता सती के वियोग में भगवान शिव समाधि में लीन थे.
इंद्र और सभी देवताओं ने भगवान शिव को समाधि से जगाने के लिए भगवान कामदेव की मदद ली और कामदेव ने भस्म होकर भगवान भोलेनाथ की तपस्या को भंग किया. इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया और दोनों देवदारु वन में एकांतवास के लिए चले गए. उस वक्त भगवान शिव और माता पार्वती एक गुफा में निवास कर रहे थे.
उस वक्त एक कबूतर गुफा में चला गया और उसने भगवान शिव के वीर्य का पान कर लिया परंतु वह इसे सहन नहीं कर पाया और भागीरथी को सौंप दिया. गंगा की लहरों के कारण वीर्य 6 भागों में विभक्त हो गया और इससे 6 बालकों का जन्म हुआ. यह 6 बालक मिलकर 6 सिर वाले बालक बन गए. इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म हुआ. बता दें कि, कार्तिकेय का जन्म तड़कासुर नामक भयानक दैत्य के वध हेतु हुआ था.
स्कंद षष्ठी का महत्व (Importance of Skand Shashthi)
धार्मिक मान्यता के मुताबिक स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय को बेहद प्रिय है. पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन उन्होंने दैत्य ताड़कासुर का वध किया था. भगवान स्कंद को चंपा के पुष्प अधिक प्रिय हैं, इसलिए इसे चंपा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि अगर कोई भक्त पुत्र प्राप्ति की मनोकामना के साथ स्कंद षष्ठी का व्रत रखता है तो भगवान उनकी मनोकामना पूरी करते हैं.