बुधवार, 17 फरवरी को स्कंद षष्ठी (Skanda Sashti 2021) मनाई जाएगी. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन महादेव शंकर और माता गौरी के ज्येष्ठ पुत्र भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था. हिंदू धर्म में स्कंज षष्ठी का विशेष महत्व है. माना जाता है कि जो कोई भी स्कंद षष्ठी का व्रत रख कर पूरे विधि-विधान के साथ पूजा करता है उसे भगवान कार्तिकेय का खास आशीर्वाद प्राप्त होता है. इसके साथ ही इस व्रत को करने से सभी तरह के नकारत्मक शक्ति का नाश होता है और संतान की सभी परेशानी दूर हो जाती है.
बता दें कि दक्षिण भारत के लोग इस त्योहार को उत्सव की तरह मनाते है. भगवान कार्तिके को स्कंद देव के नाम से भी जाना जाता है इसलिए इस तिथि को स्कंद षष्ठी के कहा जाता है.
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शुभ मुहूर्त
- माघ शुक्ल षष्ठी तिथि प्रारंभ- 17 फरवरी 2021 दिन बुधवार प्रातः 5: 46 मिनट से
- षष्ठी तिथि समाप्त-18 फरवरी 2021 दिन बृहस्पतिवार सुबह 08: 17 मिनट तक
पूजा विधि
स्कंद षष्ठी के दिन सबसे पहले प्रात:काल उठकर स्नान कर लें. इसके बाद साफ-सुथरे कपड़े पहन लें. अब भगवान स्कंद देव की मूर्ति को गंगा जल छिड़कर स्नान करा दें और साफ कपड़े पहना दें. भगवान कार्तिकेय के साथ मां गौरी शिवजी की मूर्ति को भी स्थापित करें. अब व्रत का संकल्प लें और पूजा शुरू करें. भगवान कार्तिकेय को सिंदूर का तिलक लगाएं और धूप दीप जलाएं. इसके बाद गौरी पुत्र कार्तिकेय को अक्षत हल्दी, चंदन, घी, फल, फूल, कलावा और दूध अर्पित करें. पूजा के बाद आरती और भजन-कीर्तन करें. अब शाम में पूजा के बाद फलाहार करें. इस दिन स्कंद देव पर दही में सिंदूर मिलाकर चढ़ाना काफी शुभ माना गया है. इस दिन ऐसा करने से सारी व्यवसायिक कष्ट दूर हो जाते हैं और आर्थिक स्थिति भी अच्छी बनी रहती है. इन दिन दान का भी काफी महत्व हैं. कहा जाता है कि इस दिन दान करने से विशेष फल मिलता है.
स्कंद षष्ठी की पौराणिक कथा-
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब देवलोक में असुरों ने आतंक मचाया हुआ था, तब देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ा था. लगातार राक्षसों के बढ़ते आतंक को देखते हुए देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से मदद मांगी थी. भगवान ब्रह्मा ने बताया कि भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही इन असुरों का नाश होगा, परंतु उस काल च्रक्र में माता सती के वियोग में भगवान शिव समाधि में लीन थे. इंद्र और सभी देवताओं ने भगवान शिव को समाधि से जगाने के लिए भगवान कामदेव की मदद ली और कामदेव ने भस्म होकर भगवान भोलेनाथ की तपस्या को भंग किया.
इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया और दोनों देवदारु वन में एकांतवास के लिए चले गए. उस वक्त भगवान शिव और माता पार्वती एक गुफा में निवास कर रहे थे. तभी एक कबूतर गुफा में चला गया और उसने भगवान शिव के वीर्य का पान कर लिया परंतु वह इसे सहन नहीं कर पाया और भागीरथी को सौंप दिया. गंगा की लहरों के कारण वीर्य 6 भागों में विभक्त हो गया और इससे 6 बालकों का जन्म हुआ. यह 6 बालक मिलकर 6 सिर वाले बालक बन गए. इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म हुआ.
Source : News Nation Bureau