कृष्ण भक्तों के लिए सबसे बड़ा पर्व माना जाने वाला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Sri krishna janmashtami) इसबार 2 और 3 सितंबर को मनाया जाएगा। भगवान श्रीकृष्ण की 5245वीं जयंती को लेकर मंदिरों को सजाने की तैयारी शुरू हो गई है। मथुरा समेत देश भर में फैले कृष्ण मंदिरों को सजाया-संवारा जा रहा है। हर साल भगवान कृष्ण के भक्त जन्माष्टमी का बहुत बेसब्री से इंतजार करते हैं। पूरी रात भगवान कृष्ण के जन्मदिन का जश्न धूमधाम से मनाया जाता हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी महत्व और मुहूर्त
भ्रादपद की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। जिस दिन अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र पड़ता है भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाया जाता है। इस बार श्रीकृष्ण का जन्म खास होगा क्योंकि मास (भाद्रपद), तिथि (अष्टमी), दिन (रविवार ), नक्षत्र (रोहिणी) का अद्भुत संयोग है। रविवार रात 8.48 बजे से अगले दिन सोमवार शाम 7.20 बजे तक अष्टमी तिथि रहेगी। रोहिणई नक्षत्र रात 8.49 बजे से लेकर सोमवार रात 8.05 बजे तक रहेगी।
कृष्ण पूजा का महत्व
जन्माष्टमी पर श्री कृष्ण की पूजा करने का खास महत्व है। जन्माष्टमी पर भगवान को पीले फूल अर्पित करें तो घर में बरकत होगी। श्री राधाकृष्ण बीज-मंत्र का जप करें। भक्ति एवं संतान प्राप्ति के लिए गोपाल, कृष्ण, राधा या विष्णु सहस्रनाम का पाठ व तुलसी अर्चन करें। सभी चीजें दाहिने हाथ से भगवान कृष्ण को अर्पित करें।
भगवान कृष्ण को पीले और हरे वस्त्र पहनाएं। भगवान कृष्ण के मुकुट में मोरपंख जरूर लगाएं, इससे कृष्ण जी की विशेष कृपा आपको प्राप्त होगी।
भोग में चढ़ाएं ये प्रसाद
नटखट बाल गोपाल के लिए 56 भोग तैयार किया जाता है जो कि 56 प्रकार का होता है। भोग में माखन मिश्री खीर और रसगुल्ला, जलेबी, रबड़ी, मठरी, मालपुआ, घेवर, चीला, पापड़, मूंग दाल का हलवा, पकोड़ा, पूरी, बादाम का दूध, टिक्की, काजू, बादाम, पिस्ता जैसी चीजें शामिल होती हैं। अगर आप भगवान को छप्पन भोग प्रसाद में नहीं चढ़ा पाते हैं तो माखन मिश्री एक मुख्य भोग है। आमतौर पर जन्माष्टमी के मौके पर श्रीकृष्ण को माखन मिश्री चढ़ाया जाता है।
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क्या है कृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास
पौराणिक मान्याताओं के अनुसार द्वापर युग मथुरा में कंस नाम का राजा था और उनकी एक चचेरी बहन देवकी थी। कंस अपनी बहन देवकी से बेहद प्यार करता था। उन्होंने उनका विवाह वासुदेव नाम के राजकुमार से हुआ था। देवकी के विवाह के कुछ दिन पश्चात ही कंस को ये आकाशवाणी हुई की देवकी की आठवीं संतान उसका काल बनेगा। यह सुनकर कंस तिलमिला गए और उसने अपनी बहन को मारने के लिए तलवार उठा ली, लेकिन वासुदेव ने कंस को वादा किया कि वो अपनी आठों संतान उसे दे देंगे मगर वो देवकी को ना मारे।
इसके बाद कंस ने देवकी और वासुदेव को मथुरा के ही कारागार में डाल दिया। देवकी के सातों संतान को कंस ने बारी-बारी कर के मार डाला। जब देवकी ने आठवीं संतान के रूप में श्रीकृष्ण को जन्म दिया तो उन्हें कंस के प्रकोप से बचाने के लिए गोकुल में अपने दोस्त नंद के यहां भिजवा दिया।
कहते है कृष्ण के जन्म के समय उस रात कारागार में मौजूद सभी लोग निंद्रासन में चले गए थे।
Source : News Nation Bureau