Surya Narayan Rath Yatra: हिंदू धर्म में सूर्य नारायण को देवताओं का देवता माना जाता है. वे आदित्य देव, विश्वकर्मा, सविता, भास्कर, खगेश, सूर्यदेव जैसे अनेक नामों से भी जाने जाते हैं. सूर्य नारायण को जीवन का आधार माना जाता है. वे प्रकाश, ऊर्जा और गर्मी के दाता हैं, जो जीवन के लिए आवश्यक हैं. सूर् देव को ईश्वर का प्रत्यक्ष स्वरूप माना जाता है. वे त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) में से एक हैं. वे दिन और रात को समान बनाए रखते हैं और अच्छे और बुरे के बीच न्याय करते हैं. वे रोगों को दूर करते हैं और स्वास्थ्य प्रदान करते हैं. उन्हें ज्ञान का देवता भी माना जाता है जो विद्या और बुद्धि प्रदान करते हैं. सूर्य नारायण की पूजा रविवार को विशेष रूप से की जाती है. उनकी पूजा के लिए सूर्य नमस्कार एक महत्वपूर्ण मंत्र है. इसके अलावा, गायत्री मंत्र, आदित्य हृदय स्तोत्र और सूर्य स्तोत्र का भी जाप किया जाता है. सूर्य नारायण का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, वैज्ञानिक भी है. वे पृथ्वी के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत हैं और जीवन के अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं.
सूर्य नारायण की पौराणिक कथा
ब्रह्मा जी के अनुसार, सूर्य नारायण की रथ यात्रा करने वाला सूर्यलोक में निवास करता है. उस व्यक्ति के कुल में न कोई दरिद्र होता है, न कोई रोगी. सूर्य भगवान के अभियंग के लिए घी समर्पण करने वाले तथा अनेक प्रकार का तिलक करने वाले व्यक्ति को. सूर्यलोक प्राप्त होता है गंगा आदि तीर्थों से जल लाकर जो सूर्य नारायण को स्नान कराता है वह वरुण लोक में निवास करता है. लाल रंग का भात और गुड़ का नैवेद समर्पित करने वाला व्यक्ति प्रजापति लोग को प्राप्त करता है. भक्तिपूर्वक सूर्य नारायण को स्नान कराकर पूजन करने वाला व्यक्ति सूर्यलोक में निवास करता है जो व्यक्ति सूर्य देव को रथ पर चढ़ाता है. रथ के मार्ग को पवित्र करता और पुष्प तोरण, पताका आदि से अलंकृत करता है.
वह वायु लोक में निवास करता है. जो व्यक्ति नृत्य की तादी के द्वारा वृहद उत्सव मनाता है वह सूर्यलोक को प्राप्त करता है जब सूर्य देव व्रत पर विराजमान होते हैं. उस दिन जागरण करने वाला पुण्यवान व्यक्ति निरंतर आनंद प्राप्त करता है. जो व्यक्ति भगवान सूर्य की सेवा आदि के लिए व्यक्ति को नियोजित करता है वह सभी कामनाओं को प्राप्त कर सूर्यलोक में निवास करता है. रथारूढ़ भगवान सूर्य का दर्शन करना बड़े ही सौभाग्य की बात है. जब व्रत की यात्रा उत्तर दिशा अथवा दक्षिण दिशा की ओर होती है, उस समय दर्शन करने वाला व्यक्ति धन्य है. जीस दिन रथ यात्रा हो, उसके साल भर बाद उसी दिन पुनः रथ यात्रा करनी चाहिए. यदि वर्ष के बाद यात्रा न करा सके तो बारहवें वर्ष अतिशय उत्साह के साथ उत्सव सम्पन्न कर यात्रा सम्पन्न करानी चाहिए. बीच में यात्रा नहीं करनी चाहिए. इसी प्रकार इंद्र ध्वज के उत्सव में यदि विघ्न हो जाए तो 12 वर्ष में ही उसे संपन्न करना चाहिए. जो व्यक्ति रथ यात्रा की व्यवस्था करता है, वह इन रादि लोकपाल के प्राप्त करता है. यात्रा में विघ्न करने वाले व्यक्ति मधेय जाति के राक्षस होते हैं.
सूर्य नारायण की पूजा किए बिना जो अन्य देवताओं की पूजा करता है, वह पूजा निष्फल है. रथ यात्रा के समय जो सूर्य नारायण का दर्शन करता है, वह निष्पाप हो जाता है. षष्ठी, सप्तमी, पूर्णिमा, अमावस्या और रविवार के दिन दर्शन करने से बहुत पुण्य प्राप्त होता है. आषाढ़ कार्तिक और मां की पूर्णिमा को दर्शन करने से अनंत पुण्य होता है. इन तीन मासों में भी रथ यात्रा करनी चाहिए. इनमें भी कार्ति पूर्णिमा को विशेष फलदायक होने से महाकार्तिक की कहा गया है. इन समूहों में उपवास कर जो भक्तिपूर्वक भगवान सूर्य की पूजा करता है वह सदगति को प्राप्त करता है. संसार पर अनुग्रह करने के लिए प्रतिमा में स्थित होकर सूर्यदेव स्वयं पूजन ग्रहण करते हैं. जो व्यक्ति मुंडन कराकर स्नान, जब्त, होम दान आदि करता है, वह दीक्षित होता है. सूर्य भक्त को अवश्य ही मुंडन कराना चाहिए. जो व्यक्ति इस प्रकार दीक्षित होकर सूर्य नारायण की आराधना करता है वह परमगति को प्राप्त होता है. महादेव जी इस रथ यात्रा के बाद में. मैंने वर्णन किया इसी जो पड़ता है, सुनता है वह सभी प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाता है और विधिपूर्वक रथ यात्रा का संपादन करने वाला व्यक्ति सूर्यलोक को जाता है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau