महालया (Mahalaya) से दुर्गा पूजा की शुरुआत मानी जाती है. महालया आज है. ऐसी मान्यता है कि आज धरती पर मां दुर्गा का आगमन हो जाता है. इसके अलगे दिन से नवरात्र और दुर्गा पूजा की शुरुआत होती है. नवरात्र की शुरुआत कल से हो रही है. नवरात्र में माँ दुर्गा के सभी रूपों का बहुत महत्व है. नवरात्र इस बार आठ दिनों की है. हर साल मां दुर्गा की पूजा श्रद्धालू बड़े ही श्रद्धा के साथ करने की तैयारी में रहते है. कलश स्थापना के साथ कल शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो जाएगी. महालया का अर्थ कुल देवी-देवता व पितरों का आवाहन है. 15 दिनों तक पितृ पक्ष तिथि होती है और महालया के दिन सभी पितरों का विसर्जन किया जाता है,अमावस्या के दिन पुत्रादि पितरों का पिंडदान या श्राद्ध करते है.
पितरों को पिंडदान और तिलांजलि करनी चाहिए. उनको दिया हुआ पिंड पितरों को प्राप्त होता है. पितृ पक्ष में देवता अपना स्थान छोड़ देते हैं. देवताओं के स्थान पर 15 दिन पितरों का वास होता है. महालया के दिन पितर अपने पुत्रादि से पिंडदान व तिलांजलि को प्राप्त कर अपने पुत्र व परिवार को सुख-शांति व समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान अपने घर चले जाते है. पितृ पक्ष में 15 दिन पितरों की पूजा अर्चना होती है. महालया से देवी-देवताओं की पूजा शुरू की जाती है.
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महालया का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अत्याचारी राक्षस महिषासुर के संहार के लिए मां दुर्गा का सृजन किया. महिषासुर को वरदान मिला हुआ था कि कोई देवता या मनुष्य उसका वध नहीं कर पाएगा. ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया और उसने देवताओं पर आक्रमण कर दिया. देवता युद्ध हार गए और देवलोकर पर महिषासुर का राज हो गया. महिषासुर से रक्षा करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदि शक्ति की आराधना की. इस दौरान सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली जिसने देवी दुर्गा का रूप लिया. शस्त्रों के अनुसार मां दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक भीषण युद्ध करने के बाद 10वें दिन उसका वध कर दिया. दरसअल, महालया मां दुर्गा के धरती पर आगमन होता है. इसीलिए मां दुर्गा को शक्ति की देवी माना जाता है.
मूर्तिकार करते है आज से माँ दुर्गा की आखें तैयार
हिंदू शास्त्रों के अनुसार महालया और सर्व पितृ अमावस्या एक ही दिन मनाया जाता है. महालया के दिन ही मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखें तैयार करते हैं. इसके बाद से मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप कार्य किया जाता है. दुर्गा पूजा में मां दुर्गा की प्रतिमा का विशेष महत्व है. दुर्गा पूजा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है. इस बार यह 7 अक्टूबर से शुरू हो रहा है जबकि मां दुर्गा की विशेष पूजा 11 अक्टूबर से शुरू होकर 15 अक्टूबर दशमी तक चलेगी. आपकी जानकारी के लिए बता दें की महालया पितृ पक्ष का आखिरी दिन भी है. इसे सर्व पितृ अमावस्या भी कहा जाता है. इस दिन सभी पितरों को याद कर उन्हें तर्पण दिया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वह खुशी-खुशी विदा होते हैं.
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बता दें की देश भर में बड़े उत्साह के साथ दुर्गा पूजा मानने की तैयारियां चल रही है. वहीं बंगाल के लोग नवरात्रि में मां दुर्गा की पांरपरिक रीति-रिवाज से आराधना करते हैं. हर साल बंगाल में सिंदूर खेला की रस्म भी अदा की जाती है. सिन्दूर खेला की मान्यता है की बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देने वाले विजयादशी के पर्व पर मां को विदा करने से पहले बंगाल में सिंदूर खेलने की परंपरा होती है, और इसे सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता है. सिन्दूर खेला को लेकर पुरानी मान्यतायें है कि दशमी के दिन सिंदूर खेला करने से सुहागनों के पतियों की उम्र लंबी होती है. वहीं बंगाल में माँ दुर्गा को अपनी बेटी की तरह पूजा जाता है मान्यता है . नवरात्रि में मां दुर्गा 10 दिन के लिए अपने मायके आती हैं. नवरात्रि पर जिस तरह लड़की के मायके आने पर उसकी सेवा की जाती है, उसी तरह मां दुर्गा की भी खूब सेवा की जाती है.
नवरात्रि 2021 कलश स्थापना मुहूर्त
अबकी बार अश्विन मास शुक्लपक्ष प्रथम दिन 7 अक्टूबर 2021 नवरात्रि का प्रथम दिन है. इस दिन कलश स्थापना या घटस्थापना के साथ ही मां दुर्गा की पूजा प्रारंभ होती है. आप अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापना करें, यह सर्वोत्तम मुहूर्त होता है.अभिजित मुहूर्त दिन में 11:37 बजे से दोपहर 12:23 बजे तक है. एक अन्य मुहूर्त भी है प्रात:काल में 6:54 बजे से सुबह 9:14 बजे के मध्य है आप चाहें तो इस मुहूर्त में नवरात्रि कलश स्थापना कर सकते हैं. यह नवरात्रि आठ दिन का ही है. षष्ठी तिथि की हानि होने के कारण 8 दिन का शारदीय नवरात्र शुभ नहीं माना गया है. नौ रात्रि पूर्ण होने पर ही शुद्ध नवरात्रि की शास्त्र में मान्यता बताई गई है-“ नवानां रात्रिनां समाहर:इति नवरात्र: