Gautam Buddha Enlightenment: गौतम बुद्ध की राजकुमार से भगवान बुद्ध बनने की अद्भुत यात्रा जानिए
Gautam Buddha Enlightenment: जन्म लेते ही महात्मा बुद्ध के चमत्कारों ने सबको हैरान कर दिया था. एक राजसी परिवार में जन्म लेने वाले सिद्धार्थ गौतम कैसे भगवान बुद्ध बने आइए जानते हैं.
नई दिल्ली:
Gautam Buddha Enlightenment: लुम्बिनी, नेपाल रानी माया देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया. जन्म के समय आश्चर्य की बात यह थी कि जन्म लेते ही वह बालक उठ खड़ा हुआ और चलने लगा. उस नवजात बालक ने पूरे सात कदम लिए. ऐसा अनोखा चमत्कार करने वाला यह बालक और कोई नहीं बल्कि आगे चलकर बौद्ध धर्म की स्थापना करने वाले भगवान बुद्ध थे. उनके जन्म के बाद ही जो ये चमत्कार हुआ तो सिद्धार्थ के पिता उन्हें ज्ञानी ज्योतिषी के पास ले गए और उन ज्योतिष ने उन पर एक नजर डालते ही कह दिया कि ये बालक या तो एक महान राजा बनेगा या फिर एक महान धार्मिक संत. इस भविष्यवाणी को सुनने के बाद सिद्धार्थ के पिता ने तय कर लिया कि उन्हें वो दुनिया के सारे दुख दर्द से दूर रखेंगे. ताकि उनका ऐसी किसी भी घटना से सामना ना हो सके और वो अध्यात्म से प्रेरित ही ना हो. गौतम बुद्ध का बचपन कपिल वस्तु के राज़ महल में बीता जहां उनका पालन पोषण एक राजकुमार के रूप में हुआ और उन्हें बाहर की सच्चाई और दुख दर्द से बहुत दूर रखा गया.
गौतम बुद्ध ने कब और कैसे छोड़ा राजमहल
बचपन से ही उनके मन में राजमहल से बाहर जाने की जिज्ञासा उठने लगी. एक बार 29 साल की उम्र में उन्होंने तय किया कि वो महल से बाहर जायेंगे. उन्होंने अपने रथ पर बैठकर राज्य में तीन चक्कर लगाए और हर बार उनका सामना जीवन की एक सच्चाई से हुआ. उन्होंने एक बूढ़े इंसान, एक बीमार इंसान और एक मरे हुए इंसान को देख लिया. अचानक ये दृश्य देखकर उनका मन विचलित हो उठा. वो सोच में डूब गए और तभी उन्हें एक ऋषि दिखे. उन्होंने रुक कर उन ऋषि से बात की. उन्हें पता चला कि जीवन के इन सभी दुखों से मुक्ति पाने के लिए एक ही रास्ता है खुद को माया से मुक्त कर देना और अध्यात्म के रास्ते पर चल देना. उन्होंने तभी फैसला किया कि वह राजमहल और सारी सुख सुविधाओं को त्याग देंगे. गौतम बुद्ध यह जानते थे कि उनके पिता इस बात को कभी नहीं मानेंगे. इसीलिए एक रात उन्होंने अपने सारे हीरे सारे आभूषण त्याग दिए, अपने कक्ष में छोड़कर एक साधारण रूप धारण कर लिया और महल से बाहर चले गए.
गौतम बुद्ध को कैसे मिला प्रबोधन (Enlightenment)
गौतम बुद्ध अब एनलाइटनमेंट की खोज में निकल पड़े थे. छह सालों तक गौतम बुद्ध एक साधु के रूप में जीवन जीते रहे. जीवन की सच्चाई समझकर ज्ञान हासिल कर और अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण पाकर वो अपने रास्ते पर आगे बढ़ते रहे. ऐसे ही भटकते भटकते वो 1 दिन बोधगया पहुंचे. वहां उन्होंने बोदी के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान लगाना शुरू किया.
जब राक्षस ने गौतम बुद्ध को ललकारा
उनका सामना मार नाम के एक राक्षस से हुआ. वो भ्रम, इच्छा और अहंकार का प्रतीक था. वो गौतम बुद्ध को उनके रास्ते से भटकाने की कोशिश करने लगा. सबसे पहले उसने एक भयंकर तूफान का रूप धारण करना, तेज हवा, बिजली का कड़क ना और ज़ोर की बारिश. इन सभी चीजों से उसने मौसम इतना खराब कर दिया की कोई भी इंसान बिना डगमगाए वहां बैठी नहीं सकता था. लेकिन गौतम बुद्ध पर इसका कोई भी असर नहीं हुआ. ये देखकर वो राक्षस गुस्से से पागल हो गया. उसने आसमान से आग की गोलियों और पत्थरों की बारिश शुरू कर दी. लेकिन इसके बाद भी गौतम को डरे नहीं और ना ही उन्होंने अपनी आंखे खोली. वो चुपचाप अपनी तपस्या करते रहे. बहुत देर तक कोशिश करने के बाद वो राक्षस गुस्से से गौतम बुद्ध के सामने गया और उन्हें ललकारते हुए पूछने लगा.
तुम जानते हो जिस जगह पे तुम बैठे हो वो मेरा आसन है तुमने धोखे से मेरा आसन छीन लिया है तुम्हें वहां से उठना ही होगा.
वो सोच रहा था की उसके ऐसे कहने पर गौतमबुद्ध गुस्सा हो जाएंगे और उनके इतने सालो की तपस्या व्यर्थ हो जाएगी. लेकिन इस पर भी गौतम बुद्ध सिर्फ मुस्कराये और उन्होंने धरती मां को छूते हुए कहा. हे मां, अब तुम ही इन सज्जन को बताओ कि पहले ये आसन किसने प्राप्त किया था. अहंकार में डूबा वो राक्षस हंसते हुए गौतम बुद्ध को देख रहा था, लेकिन तभी एक भयंकर गर्जना हुई और दहाड़ती हुई आवाज में धरती मां ने कहा ये स्थान सिद्धार्थ गौतम का है और यहां वही बैठेंगे.
ये सुनकर उस राक्षस के होश उड़ गए. वो जान गया की वो गौतम बुद्ध को जीस ढेय से भटकाने के लिए आया था. उन्होंने अब उस धे को पूरा कर लिया था. दुख, दर्द, क्रोध, काम सभी से अपने आप को अलग कर सिद्धार्थ गौतम अब दी इनलाइटेड गौतम बुद्ध बन गए थे. भगवान गौतम बुद्ध ने अपनी बाकी की जिंदगी धर्म के प्रचार में बिताई, जिसमें उन्होंने दुःख से मुक्ति पाने के लिए रास्ते बताए. उनकी शिक्षाओं ने बहुत सारे लोगों का जीवन बदल दिया. अपने जीवन के अंतिम समय में भी भारत के अलग-अलग भागों में जाकर धर्म की शिक्षा देते रहे. उनकी आखरी यात्रा कुशीनगर में समाप्त हुई, जहां 80 साल की उम्र में उन्होंने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया और अपने शरीर से मुक्त होकर संसार छोड़ दिया. उस दिन भी बैसाख पूर्णिमा ही थी. ये वही तिथि थी जब उनका जन्म हुआ था. जब वे सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बने थे.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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