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Kya Kehta Hai Islam: इस्लाम का अनोखा सच! मुसलमानों के पूर्वज थे गुरु शुक्राचार्य ? 

Ancestors of Muslims: अगर ये कहा जाए कि इस्लाम की उत्पत्ति दैत्य गुरू शुक्राचार्य से हुई तो शायद इस बात पर बहस शुरू हो जाए. लेकिन, इस बात को सच करने के कई प्रमाण है जिनके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे.

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Inna Khosla
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The unique truth of Islam

The unique truth of Islam( Photo Credit : News Nation)

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Kya Kehta Hai Islam: मुसलमानों के पूर्वज क्या वाकई हिंदू ही थे? क्या सच में मुसलमानों के पूर्वज गुरु शुक्राचार्य थे? इस पर काफी लंबे समय से बहस होती आ रही है. लेकिन सच क्या है. आखिर ऐसा क्यों कहा जाता है. दुनियाभर के मुसलमान चाहे इस सत्य को माने या ना माने उनके रहन सहन के तरीके, उनकी मक्का मदीना की पूजा पद्धति, उनके पवित्र चिन्ह आदि सब उन्हें किसी ना किसी तरह से हिंदू धर्म से जोड़तें हैं.

इस्लाम का अनोखा सच! (The unique truth of Islam)

ग्रंथों के अनुसार असुरों के गुरु तथा महर्षि भृगु व असुरराज हरण कश्यप की पुत्री दिव्या के संतान शुक्राचार्य ही मुस्लिम संप्रदाय के वास्तविक जनक थे. शुक्राचार्य ने राक्षसों का वंश बचाने के लिए भगवान शिव की आराधना की जिससे प्रसन्न होकर शिव जी ने अपना स्वरूप शिवलिंग शुक्राचार्य को प्रदान कर वैष्णवों से दूर रहने को कहा. शिव जी का स्पष्ट आदेश था जिस दिन कोई भी वैष्णव इस शिवलिंग पर गंगा जल चढ़ा देगा उस दिन राक्षस वंश का नाश हो जाएगा.

शुक्राचार्य ने महादेव के स्वयं दिए शिवलिंग को भारत वर्ष तथा हिन्दुओं से दूर रेगिस्तान में स्थापित किया, जिसे आज अरब देश में मक्का मदीना के नाम से जाना जाता हैं. यहां तक की अरब देश का नाम शुक्राचार्य के पौत्र नाम पर ही पड़ा है. शुक्राचार्य मूल रूप से काव्य ऋषि थे. उनके सम्मान में मक्का मदीना के शिव मंदिर को काव्या नाम दिया गया, जिसे लोग काबा कहते हैं. कालांतर में काव्या नाम विकृत होकर काबा बन गया. जिसे मुसलमानों का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है. 

अरबी भाषा में शुक्र का मतलब महान होता है और शुक्लम अर्थात शुक्रिया अथवा धन्यवाद. शब्दों का जन्म भी शुक्रचार्य के नाम पर ही हुआ है. 

मुसलमानों का पवित्र जुम्मा शुक्रवार को मनाने की वजह भी गुरु शुक्राचार्य ही हैं. 

रामायण के अनुसार सूर्पनखा का वध नहीं हुआ और वह गुरु शुक्राचार्य के आश्रम में रहने लगी थी. यह सबको पता है कि भगवान श्री राम के आदेश पर लक्ष्मण ने सूर्पनखा की नाक काट दी थी और तभी से वो अपना चेहरा ढक कर रखती थी. सूर्पनखा के चेहरा ढकने की परंपरा को अरब देश की औरतें आज भी निभाती हैं. 

अरब देशों के रेगिस्तान में तेज धूप होने की वजह से वहां के लोगों ने सिर ढकने के लिए टोपी पहनते थे, जो आगे चलकर उनकी पूजा पद्धति में शामिल हो गया. 

रेगिस्तान में उपजाऊ जमीन, अनाज आदि के अभाव में लोगों ने जानवरों को मारकर खाना शुरू कर दिया और इस हत्या को कुर्बानी का नाम दिया गया.

इंसानों के मरने के बाद उन्हें जमीन में दफनाने की परंपरा शुरू हुई, जिसका मुख्य कारण रेगिस्तान में जलाने योग्य लकड़ी का ना होना था. 

काबा में 360 मूर्तियां हैं, जिनमें शनि और चंद्रमा की मूर्तियां भी शामिल हैं. मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार इनमें से एक मूर्ति को अल्लाह का नाम दिया गया. शनि चंद्रमा के अलावा सूर्य और अनुग्रहों की मूर्तियों का होना इस बात का प्रतीक है की काबा में नौ ग्रहों की पूजा की जाती है. हिंदू धर्म आज भी नवग्रह की पूजा करता है और यह माना जाता है कि मुसलमानों को नवग्रह पूजा सीखाना गुरु शुक्राचार्य का ही काम है. 

अर्ध चंद्र को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है क्योंकि यह भगवान शिव के ललाट की शोभा को बढ़ाता है. अर्ध चंद्र चिन्ह का काबा में महादेव के प्रतीक पर होना इस चिन्ह को मुसलमानों के लिए पवित्र बनाता है. इसे इस्लाम के झंडे पर भी स्थान दिया गया है. 

हिंदू धर्म के पवित्र शब्द ओम के संस्कृत रूप ओम को अगर शीशे में देखें तो यह अरबी भाषा में लिखे गए अल्लाह की तरह ही दिखाई देता है. 

मुसलमानों में पवित्र माना जाने वाला 786 अंक भी ओम सही बना है. 

मुसलमान मक्का जाकर काबा के शिवलिंग की सात बार परिक्रमा करते हैं, जो बहुत पहले से चला रहा है. गुरु शुक्राचार्य ने यकीनन इस्लाम से पूर्व पैदा हुए अरब क्षेत्र के लोगों को हिंदू पूजा पद्धति सिखाई होगी. 

मक्का से कुछ ही दूरी पर एक बड़ा साइन बोर्ड लगा है. जिस पर लिखा है कि इस क्षेत्र में गैर मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है. यह साइन बोर्ड उस समय का प्रतीक माना जाता है जब इस्लाम की शुरुआत हुई थी तथा यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि शुक्राचार्य ने भगवान शिव की दी हुई चेतावनी पर अमल करते हुए इस मंदिर के क्षेत्र में हिन्दुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया हो. 

जहां भगवान शिव का मंदिर होता है. वहां पवित्र नदी का पानी भी पाया जाता है. हिंदू मंदिरों की यह परंपरा भी काबा से जुड़ी हुई है और मंदिर के साथ ही पवित्र पानी का स्रोत भी स्थित है, जिसे जम जम के पानी के नाम से जाना जाता है. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source :News Nation Bureau

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