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Akshay Tritiya 2024: अक्षय तृतीया से जुड़ी हैं ये 12 पौराणिक घटनाएं, जानें क्या हैं मान्यताएं

Akshay Tritiya 2024: अक्षय तृतीया, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. इस दिन को अत्यंत शुभ माना जाता है आइए जानें इससे जुड़ी पौराणिक घटनाएं.

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Inna Khosla
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Mythological  incident happened on akshaya tritiya

Mythological incident happened on akshaya tritiya ( Photo Credit : Social Media)

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Akshay Tritiya 2024: अक्षय तृतीया हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि को मनाया जाता है। यह एक पवित्र दिन माना जाता है और कई धार्मिक अनुष्ठान और उत्सव इस दिन किए जाते हैं। सनातन धर्म में अक्षय  तृतीया तिथि का विशेष महत्व है. वैशाख मास की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया पर्व मनाया जाता है. इस पर्व से सनातन धर्म की अनेक कथाएं और घटनाएं जुड़ी हुई हैं. इस पर्व का संबंध जैन धर्म से भी है. यही वजह है अक्षय तृतीया को परम कल्याणकारी तिथि माना जाता है. इस तिथि को किए गये पूजा-पाठ और दान का विशेष फल मिलता है.

साधक के जीवन से सभी तरह के कष्टों का निवारण हो जाता है. आइए जानते हैं इस तिथि से विशेष क्या घटनाएं जुड़ी हैं, क्यों खास है अक्षय तृतीया पर्व. ऐसी मान्यता है कि मां लक्ष्मी, धन और समृद्धि की देवी, इसी दिन समुद्र मंथन से प्रकट हुई थीं। इसी तरह की 12 घटनाओं के बारे में आपको बताते हैं जो अक्षय तृतीया से जुड़ी हैं. 

1) इस दिन भगवान नर-नारायण, परशुराम जी और हयग्रीव जी का अवतरण हुआ. भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार, का जन्म भी इसी दिन हुआ था।

2) इस तिथि को ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म हुआ. यह विश्वास कि ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म अक्षय तृतीया को हुआ था, एक लोकप्रिय मिथक है।

3) इसी तिथि पर रावण के सौतेले भाई कुबेर जी को खजाना मिला. कुबेर को खजाना मिलने का मिथक हमें धन, समृद्धि और संपत्ति के महत्व के बारे में याद दिलाता है। ऐसा भी माना जाता है कि उन्हें देवताओं का खजानेदार बताया गया है, जिन्होंने उन्हें अक्षय तृतीया के दिन यह पद प्रदान किया था।

4) इस दिन सुदामा जी भगवान कृष्ण से द्वारिका पुरी में मिले. यह एक पवित्र दिन माना जाता है और कई धार्मिक अनुष्ठान और उत्सव इस दिन किए जाते हैं।

5) जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी ने व्रत का पारण किया. कुछ ग्रंथों में यह उल्लेख है कि भगवान ऋषभदेव जी ने एक वर्ष का व्रत फाल्गुन मास की पूर्णिमा को शुरू किया था और वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पारण किया था।

6) इसी तिथि से महाभारत ग्रंथ की रचना शुरु हुई. महाभारत एक विशाल महाकाव्य है जिसमें एक लाख से अधिक श्लोक हैं। ऐसा हो सकता है कि महाभारत की रचना अक्षय तृतीया के दिन शुरू हुई हो, लेकिन इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है।

7) इसी तिथि से सतयुग और त्रैतायुग की शुरुआत हुई. हिंदू धर्म में चार युग माने जाते हैं: सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग. यह विश्वास कि अक्षय तृतीया के दिन सतयुग और त्रैतायुग की शुरुआत हुई थी, एक लोकप्रिय धारणा है.

8) द्वापर युग का समापन अक्षय तृतीया तिथि को हुआ. कुछ ग्रंथों में यह उल्लेख है कि द्वापर युग का समापन महाभारत युद्ध के बाद हुआ था, जो अक्षय तृतीया के कई दिनों बाद हुआ था। अन्य ग्रंथों में यह उल्लेख है कि द्वापर युग का समापन धीरे-धीरे हुआ था, एक विशिष्ट तिथि पर नहीं।

9) आदिशंकराचार्य जी ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की. कनकधारा स्तोत्र की रचना कब और कहां हुई, इस बारे में अलग-अलग मत हैं। कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि यह स्तोत्र 8वीं शताब्दी में रचा गया था, जब आदि शंकराचार्य जी भारत में घूम रहे थे।

10) इसी तिथि को महाभारत युद्ध का समापन हुआ. ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि युद्ध अक्षय तृतीया के आसपास के समय में समाप्त हुआ था, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि युद्ध किस तिथि को समाप्त हुआ था।

11) अक्षय तृतीया से ही चारधाम यात्रा शुरु होती है. हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि भगवान विष्णु ने सतयुग की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन किए थे। चार धाम (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री) भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों से जुड़े पवित्र तीर्थस्थल हैं। इसलिए यह माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन से चारधाम यात्रा शुरू करना अत्यंत शुभ होता है।

12) सिर्फ इसी तिथि को होते हैं श्री बांकेबिहारी जी के चरण दर्शन. पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्री बांकेबिहारी जी अक्षय तृतीया के दिन ही पहली बार प्रकट हुए थे। इसलिए यह दिन उनके लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। श्री बांकेबिहारी जी का मंदिर 17वीं शताब्दी में बनाया गया था। उस समय से अक्षय तृतीया के दिन उनके चरण दर्शन की परंपरा शुरू हुई थी।

अक्षय तृतीया तिथि से इस तरह की घटनाएं विशेष रुप से जुड़ी हैं. यही वजह है अक्षय तृतीया तिथि को महापर्व के रुप में मनाया जाता है. इस तिथि को शास्त्रों में विशेष तिथि माना जाता है. इस दिन किए गये कार्यों में शुभता बनी रहती है. यही वजह है, नूतन गृह प्रवेश, व्यापार का शुभारंभ, खरीदारी करना विशेष फलदायी माना गया है. इस महापर्व पर हमें भगवान लक्ष्मीनारायण का पूजन करने के साथ पितरों की मुक्ति के लिए तर्पण पिंडदान भी करना चाहिए. भगवान और पितरों की कृपा से घर परिवार में सुख शांति समृद्धि का वास होता है. साथ ही श्रीहरि के बैकुंठ लोक में स्थान प्राप्त होता है. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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Source : News Nation Bureau

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