Devuthani Ekadashi 2023 : देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्त्व है. आपको पूजा कैसे करनी चाहिए और व्रत कैसे रखना है ये सब जान लें. जिन लोगों के विवाह में बाधा आ रही है या विवाह हो ही नहीं रहा उन्हे इस दिन व्रत रखना चाहिए. इस दिन तुलसी विवाह की परंपरा भी है. भगवान विष्णु के लिए एकादशी का व्रत रखने वाले की हर मनोकामना पूरी होती है. उसके घर में हर तरह की सुख सुविधा बनी रहती है और जीवन में सभी ओर से शांति मिलती है. आप अगर देवउठनी एकादशी का व्रत रख रहे हैं या इस दिन विधि-विधान से पूजा करना चाहते हैं तो ये सारी पूजा विधि और देवउठनी एकादशी की कथा सब जान लें.
* देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं जल्दी सुबह उठकर नहाकर आंगन में चौक बनाएं.
* उसके बाद भगवान विष्णु के चरणों को हाथों से बना लें.
* फिर दिन की तेज धूप में विष्णु के चरणों को ढंक दें.
* घंटा, शंख, मृदंमृदंग, नगाड़े और वीणा बजाएं.
* खेल-कूद, नाच गाना कीजिए उत्सव मनाइए
देवउठनी एकादशी की पूजा विधि
* पूजन पू के लिए भगवान का मन्दिर अथवा सिंहा सिं सन को विभिन्न प्रकार के लता पत्र, फल, पुष्पुप और वंदनबार आदि से सजाएं.
* आंगन आं में देवोत्थान का चित्र बनाएं, उसके बाद फल, पकवान, सिंघाड़े, गन्ने आदि चढ़ाकर डलिया से ढंक दें तथा दीपक जलाएं.
* विष्णु पूजा या पंचदेव पूजा विधान रामार्चन चर्चन्द्रिका के मुताबिक श्रद्धापूर्वक पूजन तथा दीपक, कपूर आदि से आरती करें.
* इसके बाद भगवान विष्णु को फूल चढ़ाएं... साथ ही प्रह्लाद, नारद, पाराशर, पुण्पुडरीक, व्यास, अम्बरीष, शुक, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत, पंचामृत का प्रसाद बांटे.
* देवउठनी एकादशी की रात को सुभाषित स्त्रोत का पाठ करें, भागवत कथा सुने और भजन गाएं
* अंत में कथा सुनकर प्रसाद बांटें .
देवउठनी एकादशी की कथा
देवउठनी एकादशी की पौराणिक कथा इस अनुसार है - एक राज्य में एकादशी के दिन प्रजा से लेकर पशु तक अन्न ग्रहण नहीं करते थे. न ही कोई अन्न बेचता था. एक बार की बात है भगवान विष्णु ने राजा की परीक्षा लेने के लिए सुंदरी का धर लिया और सड़क किनारे बैठ गए. राजा वहां से गुजरे तो सुंदरी से उसके यहां बैठने का कारण पूछा. स्त्री ने बताया कि उसका इस दुनिया में कोई नहीं वह बेसहारा है. राजा उसके रूप पर मोहित हो गए और बोले कि तुम मेरी रानी बनकर महल चलो. सुंदरी ने राजा की बात स्वीकार ली लेकिन एक शर्त रखी कि राजा को पूरे राज्य का अधिकार उसे सौंपना होगा और जो वह बोलेगी, खाने में जो बनाएगी उसे मानना होगा. राजा ने शर्त मान ली.
अगले दिन एकादशी पर सुंदरी ने बाजारों में बाकी दिनों की तरह अन्न बेचने का आदेश दिया. मांसाहार भोजन बनाकर राजा को खाने पर मजबूर करने लगी. राजा ने कहा कि आज एकादशी के व्रत में मैं तो सिर्फ फलाहार ग्रहण करता हूं. रानी ने शर्त याद दिलाते हुए राजा को कहा कि अगर यह तामसिक भोजन नहीं खाया तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट दूंगी. राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी को बताई.
बड़ी महारानी ने राजा से धर्म का पालन करने की बात कही और अपने बेटे का सिर काट देने को मंजूर हो गई. राजकुमार ने भी पिता को धर्म न छोड़ने को कहा और खुशी खुशी अपने सिर की बलि देने के लिए राजी हो गए. राजा हताश थे और सुंदरी की बात न मानने पर राजकुमार का सिर देने को तैयार हो गए. तभी सुंदरी के रूप से भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि ये तुम्हारी परीक्षा थी और तुम इसमे पास हो गए.
श्रीहरि ने राजा से वर मांगने को कहा. राजा ने इस जीवन के लिए प्रभू का धन्यवाद किया कहा कि अब मेरा उद्धार कीजिए. राजा की प्रार्थना श्रीहरि ने स्वीकार की और वह मृत्यु के बाद बैंकुठ की प्राप्ति हुई.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)