जन्माष्टमी (Janmashtami) इस वर्ष 30 अगस्त को है. इन दिन लोग दिन में व्रत रखते और रात में भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करते हैं. श्रद्धालु हर वर्ष उत्साह से यह त्योहार मनाते हैं लेकिन इस बार कुछ खास है. दरअसल, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में शुल्क पक्ष की अष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इस साल जन्माष्टमी पर विशेष संयोग बन रहा है. इस बार 27 साल बाद यह पहला मौका है जब श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व एक ही दिन मनाया जाएगा. इस बार भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि 29 अगस्त की रात 11:27 बजे से 30 अगस्त की रात 1.59 बजे तक ही रहेगी. इसके बाद 30 अगस्त की सुबह 6:38 मिनट से 31 अगस्त सुबह 9.43 बजे तक रोहिणी नक्षत्र रहेगा. पिछले 27 साल से स्मार्त औऱ वैष्णव की अलग-अलग जन्माष्टमी होती थी लेकिन ऐसा इस बार नहीं है. दरअसल, वैष्णव उदयातिथि से और स्मार्त वर्तमान तिथि को मानते हैं. ज्योतिष विशेषज्ञों के अनुसार अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र एक साथ पड़ रहे हैं. इस जयंती योग कहा जाता है, इसलिए ये महासंयोग ज्यादा लाभकारी है. ज्योतिषियों और तमाम जानकारों का दावा है कि द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था तब यही तिथि पड़ी थी. इस बार भी यही तिथि पड़ी है. इस बार व्रत करके पूजन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी. इस दिन श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए उन्हें भोग लगाएं और आरती करें.
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साथ ही आपको यह भी बता दें कि रात में भगवान को माखन, मिसरी, दही, दूध, केसर, मावे, घी, मिठाई आदि से भोग लगाएं. अगर लोक प्रचलन की बात की जाए तो इस दिन लोग घरों में तरह-तरह की झांकियां भी सजाते हैं. इस झांकी में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र का श्रृंगार करके उनकी प्रिय वस्तुएं साथ रखते हैं. पूजन करके भगवान की आरती करते हैं. इसके अलावा मंदिरों में भी अत्यंत सुंदर सजावट होती है. कई मंदिरों में तो विदेशों से फूल मंगाए जाते हैं. इस मामले में मथुरा और वृंदावन के मंदिर प्रसिद्ध हैं. इसके अलावा स्वयंसेवी खुद भी साज-सजावट के लिए तमाम सामान दे जाते हैं. हालांकि इस बार कोरोना महामारी के कारण मंदिरों में भीड़ से बचने के लिए कुछ व्यवस्थाएं की जा सकती हैं. ऐसे में श्रद्धालु पहले से सुनिश्चित कर लें कि कौन से मंदिर खुले हैं और कितने बजे तक पूजन करने की व्यवस्था है.
Source : News Nation Bureau