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trishund ganpati temple
गणेश चतुर्थी का त्योहार देशभर में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. भक्त मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं. गणेशोत्सव 10 दिनों तक चलता है. इस समय भक्त बप्पा को घर पर लेकर आते हैं और फिर 10 दिन बाद उनका विसर्जन कर देते हैं. इस दौरान बप्पा को अलग-अलग भोग लगाएं जाते हैं. वहीं हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां की मान्यता और विशेषता सुनकर आपको हैरानी हो जाएगी. वहीं भारत में में वैसे तो गणेश जी के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन हर मंदिर की अपनी अलग पहचान और कथा होती है. ये मंदिर भी भक्तों के बीच अपनी अद्भुत मान्यता के कारण जाना जाता है. आइए आपको बताते हैं.
क्या है मंदिर का नाम
दरअसल, इस मंदिर का नाम त्रिशुंड गणपति मंदिर है. यह मंदिर महाराष्ट्र के पुणे में है. इस मंदिर को त्रिशुंड विनायक भी कहा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि ये मंदिर पहले शिव मंदिर था, लेकिन बाद में इसे बप्पा को सौंप दिया था. मंदिर के निर्माण की बात करें तो मंदिर का निर्माण 26 अगस्त 1754 को धामपुर में शुरु किया था और इसका काम 1770 में पूरा हुआ था.
मोर पर सवार हैं बप्पा
त्रिशुंड का मतलब है तीन सूंड. जो कि भगवान गणेश की इस अनोखी मूर्ति की खासियत है. बप्पा यहां तीन आंख और छह भुजाओं के साथ विराजमान है. वहीं यहां बप्पा चूहे पर नहीं बल्कि कार्तिकेय के वाहन मोर पर सवार हैं. यह मूर्ति रत्नों से सजाई गई है. ऐसा माना जाता है कि इस मूर्ति को देखने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं. वहीं जो किसी नए काम से पहले जो भी बप्पा के दर्शन करते हैं. उन्हें बप्पा का आशीर्वाद मिलता है.
गुरु पूर्णिमा पर खुलता है दरवाजा
वहीं ऐसी मान्यता है कि मंदिर के पीछे वाले हिस्से में साउथ इंडिया के मंदिरों की तरह लिंगोद्भव की मूर्ति भी है. वहीं इसके दरवाजों की रखवाली करने के लिए गज-लक्ष्मी की मूर्ति बनी हुई है. इसके अलावा मंदिर में एक तहखाना भी है, जहां कि तपस्वी ध्यान करते हैं. वहीं यह जगह बंद रहती हैं. अगर आपको इसके दर्शन करने हैं तो यह केवल गुरु पूर्णिमा के दिन ही खुलता है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)