क्षीर सागर में चार महीने की योगनिद्रा के बाद भगवान विष्णु आज उठ गए हैं. आज देवोत्थान एकादशी है और इस दिन तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) की परंपरा है. इसका शुभ मुहूर्त 8 नवंबर को शाम 7:55 से रात 10 बजे तक रहेगा. शास्त्रों के अनुसार हिंदू तुलसी को माता मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं. बिना तुलसी पत्र के इस्तेमाल के कोई भी पूजा संपूर्ण नहीं मानी जाती है. आज तुलसी विवाह के दौरान तुलसी और शालिग्राम के साथ भगवान गणेश की कभी पूजा नहीं करनी चाहिए. दरअसल इसके पीछे एक कथा है.
एक बार भगवान गणेश गंगा नदी के किनारे तपस्या कर रहे थे. उस समय तुलसी भी अपने विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा कर रही थी, जिसके क्रम में वे गंगा के तट पर भी पंहुची. गंगा के तट पर देवी तुलसी ने गणेश जी को देखा, जो कि तपस्या में लीन थे. गणेश जी रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान थे, उनके पूरे शरीर पर चंदन लगा हुआ था, गले में पुष्पों और स्वर्ण-मणि रत्नों के अनेक हार थे. उनके कमर में अत्यंत कोमल रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था.
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उनका यह आकर्षक रूप देख तुलसी उन पर मोहित हो गई और उनके मन में गणेश से विवाह करने की इच्छा जागी. तुलसी ने अपने विवाह की इच्छा ज़ाहिर करने के लिए गणेश जी का ध्यान भंग कर दिया. तब भगवान गणेश ने तुलसी से उनके ऐसा करने की वजह पूछी. तुलसी के विवाह की मंशा जानकर भगवान गणेश ने कहा कि वे एक ब्रह्मचारी हैं और प्रस्ताव को नकार दिया.
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विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर देने से दुखी देवी तुलसी ने गवान गणेश को यह श्राप दे दिया कि तुम्हारे एक नहीं, दो विवाह होंगे. तुलसी द्वारा इस श्राप को सुन गणेश को भी गुस्सा आ गया और उन्होंने भी तुलसी को यह श्राप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा. एक असुर की पत्नी होने का श्राप सुन तुलसी बेचैन हो गयी और फ़ौरन भगवान गणेश से माफी मांगी.
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श्री गणेश ने तुलसी से कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण नाम के एक राक्षस से होगा, लेकिन फिर तुम एक पौधे का रूप धारण करोगी. भगवान विष्णु और श्री कृष्ण को तुम बेहद प्रिय होगी और साथ ही कलयुग में जगत के लिए जीवन और मोक्ष देने वाली होगी पर मेरी पूजा में तुम्हारा प्रयोग वर्जित रहेगा. मुझे तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाएगा. ऐसा माना जाता है, कि तब से ही भगवान श्री गणेश जी की पूजा में तुलसी वर्जित मानी जाती है.