Mahakaleshwar Mandir: आखिर महाकालेश्वर मंदिर में मौजूद कालभैरव मंदिर में हर रोज़ चढ़ाई जाने वाली हजारों लीटर शराब कहां गायब हो जाती है? उज्जैन में रात क्यों नहीं गुजार सकते है? मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री क्या है? महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती के पीछे की सच्चाई क्या सच में किसी इंसान की चिता की राख से ही की जाती है? बाबा महाकालेश्वर की आरती क्यों भक्तों को अलग अलग रूप में दर्शन देते हैं? महाकाल क्या सच में महाकाल मंदिर के अंदर पूजा करने आते हैं? क्या कोई दिव्य शक्ति है?
महाकालेश्वर मंदिर के दरवाजे का रहस्य
उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर के मंदिर में दुनिया भर से श्रद्धालु यहां विराजित एकमात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. ये मंदिर अपने अंदर प्राचीन रहस्य और इतिहास को समेटे हुए हैं. आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन महाकाल मंदिर में एक ऐसा रहस्यमयी दरवाजा है जिसके अंदर बिना बाबा महाकाल की आज्ञा लिए प्रवेश नहीं किया जा सकता. यह द्वार चांदी से बनाया गया है और जिस प्रकार से किसी भी घर में प्रवेश करने से पहले घंटी बजाई जाती है. उसी तरह महाकाल के दरबार में भी प्रवेश करने से पहले चांदी द्वार की घंटी को बजाया जाता है. जब घंटी बजती है उस समय इस क्षेत्र में पंडित और पुरोहित के अलावा कोई नहीं होता. ये घंटी बजाने के बाद भगवान महाकाल से अनुमति लेकर चांदी का द्वार खोला जाता है, जिसके बाद मंदिर में प्रवेश कर भगवान की नियमित भस्म आरती होती है. कोई भी भगवान महाकाल से अनुमति लिए बिना और घंटी बजाय बिना मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश नहीं कर सकता है.
भस्म आरती का रहस्य
भारत की ज्यादातर मंदिरों के अंदर भगवान की जब भी आरती की जाती है तो दीये की बाती को प्रज्जवलित करके की जाती है, लेकिन महाकलेश्वर मंदिर में जब भगवान शिव की आरती की जाती है तो वह भस्म की राग से होती है. बाबा महाकाल की भस्म आरती के दर्शन करने लोग दूर दूर से आते हैं. भस्म किसी भी वस्तु का अंतिम रूप होता है, चाहे वह इंसान हो, लकड़ी हो या मिट्टी जलने के बाद हमें अंत में उसे भस्म ही प्राप्त होती है. बहुत से श्रद्धालुओं को यह लगता है कि बाबा की आरती भस्म की चिता की ताज़ी राख से होती है.
भस्म आरती के लिए पहले लोग अपने जीवनकाल में ही रजिस्ट्रेशन कराते थे. मृत्यु के बाद उनकी चिता की राख से भगवान शिव की पूजा की जाती थी. लेकिन अब कुछ कारणों की वजह से ऐसा नहीं होता है. कहा जाता है कि अब महाकाल की भस्म आरती के लिए कपिला गाय के गोबर से बने कंडे शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर भस्म को तैयार किया जाता है और फिर इस भस्म से ही बाबा महाकाल की आरती की जाती है. इस आरती को बंद कमरे में केवल मंदिर के पुजारी ही करते हैं और ऐसा कहा जाता है कि ज्योतिर्लिंगों पर चढ़े भस्म को प्रसाद रूप में ग्रहण करने से रोग दोष से भी मुक्ति मिलती है. यह पहला ऐसा मंदिर है जहाँ भगवान शिव की तीन में छ बार आरती की जाती है. इसकी शुरुआत भस्म आरती से ही होती है.
नाम से जुड़ा रहस्य
वैसे तो महाकालेश्वर मंदिर के बहुत सारे रहस्य है, लेकिन सबसे बड़ा रहस्य तो इसके नाम में ही छुपा हुआ है. आपने कभी यह सोचने का प्रयास किया है कि आखिर मंदिर का नाम महाकालेश्वर ही क्यों पड़ा? तो आपको बता दें कि इसके पीछे एक मान्यता है जिसके अनुसार बताया जाता है कि एक राक्षस का वध करने के लिए महाकाल का शिवलिंग प्रकट हुआ था. उस समय भगवान शिव राक्षस का वध करने के लिए काल बनकर प्रकट हुए थे. जब उज्जैन में भगवान शिव ने राक्षस का वध किया तो लोगों ने भगवान शिव के आगे हाथ जोड़तें हुए उनसे उज्जैन में रहने के लिए निवेदन किया. इसके बाद शिवलिंग उज्जैन में स्थापित हो गई. ऐसे में शिवलिंग कलयुग के अंत तक उज्जैन में ही स्थापित रहेंगे. इसलिए इसे महा नाम दिया गया.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source(News Nation Bureau)