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कोरिया का अछूत शिवमंदिर, इसके आसपास जाने से भी घबराते हैं लोग

छत्तीसगढ़ के कोरिया के चिरमिरी नगर निगम मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूरी पर साजापहाड़ गांव में एक शिव मंदिर है. इस मंदिर में पूजा नहीं की जाती

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Drigraj Madheshia
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कोरिया का अछूत शिवमंदिर, इसके आसपास जाने से भी घबराते हैं लोग

छत्तीसगढ़ के कोरिया के चिरमिरी नगर निगम मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूरी पर साजापहाड़ गांव का शिव मंदि

छत्तीसगढ़ के कोरिया (Korea) के चिरमिरी नगर निगम मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूरी पर साजापहाड़ गांव में एक शिव मंदिर (Shiv Mandir)  है. इस मंदिर में पूजा नहीं की जाती, क्योंकि स्थानीय लोग इसे अछूत व अपवित्र मानते हैं.अंधविश्वास व कट्टरपंथी सोच के कारण किसी इंसान को अछूत या अपवित्र मानकर उसका बहिष्कार करने की खबरें तो सामने आती रहती हैं, लेकिन एक ऐसा स्थान भी है, जहां इंसानों ने एक मंदिर के भगवान को ही अछूत मान लिया है. इस मंदिर में 26 साल से पूजा-पाठ बंद है.

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प्रेमी युगल की वजह से मंदिर हुआ अपवित्र

छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के चिरमिरी नगर निगम में वार्ड-1 के साजापहाड़ गांव का शिव मंदिर करीब 60 साल पुराना है. यहपिछले 26 सालों से बंद है और अब खंडहर होने लगा है. इस मंदिर में रखी भगवान की मूर्ति व शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती. क्योंकि स्थानीय लोग इसे अछूत व अपवित्र मानते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि करीब 26 साल पहले एक प्रेमी युगल मंदिर के भीतर आपत्तिजनक हालत में पकड़े गए थे.इसके बाद बुजुर्गों की एक मीटिंग हुई थी, जिसमें पंडित रामनारायण ठाकुर की उपस्थिति में मंदिर को अशुभ और वहां विराजित मूर्तियों को अछूत मानने का निर्णय लिया गया था. इसके बाद से शिव मंदिर में पूजा-अर्चना बंद कर दी गई.

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साजापहाड़ के इस मंदिर में आज भी पत्थर की जलहरी, शिवलिंग और त्रिशूल जीर्ण-शीर्ण अवस्था में देखे जा सकते हैं. इसके अलावा मंदिर में देवी-देवताओं की मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं. पहाड़ी पर मौजूद मंदिर के परिसर के साथ साथ मंदिर के भीतर भी घास और झाड़ियां उग आई हैं . बताया जाता है कि यह शिव मंदिर 60 वर्ष पहले बिरला एण्ड संस कंपनी के अधिकारियों ने बनवाया था. उस वक्त इस मंदिर में पूरे विधि-विधान से दो वक्त की आरती व पूजा-अर्चन होती थी. 

साजापहाड़ गांव के पंडित रामनारायण ठाकुर वहां पूजा करवाते थे.महाशिवरात्रि और सावन में इस शिव मंदिर में दर्शन के लिए भक्तों का मेला लगता था.अब मंदिर तो दूर लोग इसके आसपास जाने से भी घबराते हैं. चिरमिरी के कुछ युवाओं ने 25 साल बाद अंधविश्वास से दूर हटते हुए मंदिर के पट खुलवाए और गांव वालों को भी इस कार्य में आगे आने की प्रेरणा दी, लेकिन ग्रामिण अपने पूरखों द्वारा लिए गए इस निर्णय को तोड़ना नहीं चाहते. ग्रामिण मंदिर में पूजा करने को अब भी तैयार नहीं हैं.

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गांव के बुजुर्ग देव साय बताते हैं कि 60 वर्ष पहले बिरला एण्ड सन्स कंपनी इस क्षेत्र में कोयला खदान चलती थी. उसी दौरान अधिकारियों ने यह मंदिर बनवाया था. पहले मंदिर में खासी रौनक रहती थी. कंपनी कोयला खनन करती थी, लोगों के लिए भी रोजगार के साधन थे.

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चिरमिरी में ही पोड़ी हनुमान मंदिर के पुजारी शास्त्री पवन तिवारी इस अंधविश्वास को नहीं मानते. पं. पवन कहते हैं कि भगवान व उनका स्थान कभी भी अशुद्ध नहीं होता है. शास्त्रों में भी इसका वर्णन है. किसी द्वारा कोई गलत कृत करने पर वह व्यक्ति गलत या अशुद्ध हो सकता है, लेकिन वह स्थान कभी भी अछूत नहीं होता है. लोगों को भगवान में आस्था रखकर फिर से मंदिर में पूजा-पाठ शुरू करनी चाहिए.

Source : News Nation Bureau

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