Varuthini Ekadashi 2020: जानें इस व्रत का क्या है खास महत्व, मिलता है ये विशेष लाभ

इस एकादशी का व्रत रखने वाले को दशमी के दिन से कांसे के बर्तन में भोजन करना, मांस, मसूर की दाल, चना, शाक, मधु (शहद), दूसरे का अन्न, दूसरी बार भोजन करना त्याग कर देना चाहिए. साथ ही पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. रात भजन-कीर्तन में करना चाहिए.

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Vineeta Mandal
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Varuthini Ekadashi 2020( Photo Credit : सांकेति चित्र)

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आज यानि 18 अप्रैल को वरुथिनि एकादशी का व्रत है. ये व्रत 19 अप्रैल 2020 को सुबह 05 बजकर 51 मिनट से सुबह 08 बजकर 27 मिनट तक इसका पारण करने का मुहूर्त है. वहीं बता दें कि वैशाख माह में कृष्ण पक्ष को आने वाली वरुथिनी एकादशी को बहुत ही शुभ माना जाता है. वरुथिनी एकादशी का फल अन्न दान और कन्या दान के योग के बराबर मिलता है. कहा जाता है कि वरुथिनी एकादशी का उपवास रखने से 10 हजार वर्षों की तपस्या के बराबर फल प्राप्त होता है.

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इस दिन इनका करें त्याग-

इस एकादशी का व्रत रखने वाले को दशमी के दिन से कांसे के बर्तन में भोजन करना, मांस, मसूर की दाल, चना, शाक, मधु (शहद), दूसरे का अन्न, दूसरी बार भोजन करना त्याग कर देना चाहिए. साथ ही पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. रात भजन-कीर्तन में करना चाहिए.

पूजा-विधि- 

सुख प्राप्ति के लिए श्री नाराय़ण के चित्र पर सिंदूर,तुलसी पत्र चढ़ाएं. भगवान मधुसूदन के चित्र पर कमल गट्टे चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है. गृह क्लेश से मुक्ति पाने के लिए श्री बाल गोपाल को दही का भोग लगाएं. प्रेम में सफलता के लिए श्री राधा-कृष्ण पर रोली चढ़ाएं. सौभाग्य प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु के चित्र पर हल्दी चढ़ाएं.

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ये है व्रत कथा-

प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करते थे. वह दानशील एवं तपस्वी थे. एक दिन वह जंगल में तपस्या करने गए, तभी एक भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा.

इसके बावजूद राजा तपस्या में लीन रहे. कुछ देर बाद भालू राजा को घसीटकर जंगल में ले गया. राजा ने क्रोध और हिंसा न कर करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा. राजा की पुकार सुनकर श्री विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू का वध कर दिया, लेकिन तब तक भालू राजा का पैर खा चुका था.

यह देख भगवान विष्णु बोले- वत्स! तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत करो. भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था. भगवान की आज्ञा मान राजा ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक इस व्रत को किया. इसके प्रभाव से वह शीघ्र ही सुंदर और संपूर्ण अंगों वाले हो गए.

Source : News Nation Bureau

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