Vasudev Dwadashi 2022 Katha: वासुदेव द्वादशी का व्रत भगवान कृष्ण को समर्पित है. वसुदेव द्वादशी का व्रत देव शयनी एकादशी के 1 दिन पश्चात मनाया जाता है. आषाढ़ मास और चातुर्मास के आरंभ में वासुदेव द्वादशी का व्रत किया जाता है. वासुदेव द्वादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण के साथ भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है. जो भी मनुष्य वासुदेव द्वादशी का व्रत करता है उसे मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है. वासुदेव द्वादशी के दिन भगवान वासुदेव के अलग-अलग नाम और उनके व्यूहों के साथ साथ पैर से लेकर सिर तक सभी अंगों की पूजा की जाती है.
नारद मुनि द्वारा बताई गई वासुदेव द्वादशी की व्रत कथा
धर्म ग्रंथों के अनुसार वासुदेव द्वादशी के दिन भगवान वासुदेव की पूजा की जाती है. वासुदेव द्वादशी के दिन किसी जल से भरे पात्र में वासुदेव भगवान की मूर्ति को रखकर लाल और पीले वस्त्रों से ढक कर भगवान वासुदेव की मूर्ति की पूजा की जाती है. इस दिन दान करने का भी विशेष महत्व बताया गया है. वासुदेव द्वादशी व्रत का विधान नारद मुनि ने भगवान वासुदेव और देवकी को बताया था. जो भी भक्त पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ वासुदेव द्वादशी का व्रत रखता है उसके सभी सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
पौंड्रक की कथा
एक कथा के अनुसार बहुत समय पहले चुनार नाम का एक देश था. इस देश के राजा का नाम पौंड्रक था. पौंड्रक के पिता का नाम वासुदेव था इसलिए पौंड्रक खुद को वासुदेव कहा करता था. पौंड्रक पांचाल नरेश की राजकुमारी द्रौपदी के स्वयंवर में भी मौजूद था. पौंड्रक मूर्ख अज्ञानी था. पौंड्रक को उसके मूर्ख और चापलूस मित्रों ने कहा कि भगवान कृष्ण विष्णु के अवतार नहीं बल्कि पौंड्रक भगवान विष्णु का अवतार हैं. अपने मूर्ख दोस्तों की बातों में आकर राजा पौंड्रक नकली चक्र, शंख, तलवार और पीत वस्त्र धारण करके अपने आप को कृष्ण समझने लगा.
एक दिन राजा पौंड्रक ने भगवान कृष्ण को यह संदेश भी भेजा की उसने धरती के लोगों का उद्धार करने के लिए अवतार धारण किया है. इसलिए तुम इन सभी चिन्हों को छोड़ दो नहीं तो मेरे साथ ही युद्ध करो. काफी समय तक भगवान कृष्ण ने मूर्ख राजा की बात पर ध्यान नहीं दिया, पर जब राजा पौंड्रक की बातें हद से बाहर हो गई तब उन्होंने उत्तर भिजवाया कि मैं तेरा पूर्ण विनाश करके तेरे घमंड का बहुत जल्द नाश करूंगा. भगवान श्री कृष्ण की बात सुनने के बाद राजा पौंड्रक श्री कृष्ण के साथ युद्ध की तैयारी करने लगा. अपने मित्र काशीराज की मदद पाने के लिए काशीनगर गया.
भगवान कृष्ण ने पूरे सैन्य बल के साथ काशी देश पर हमला किया. भगवान कृष्ण के आक्रमण करने पर राजा पौंड्रक और काशीराज अपनी अपनी सेना लेकर नगर की सीमा पर युद्ध करने आ गए. युद्ध के समय राजा पौंड्रक ने शंख, चक्र, गदा, धनुष, रेशमी पितांबर आदि धारण किया था और गरुड़ पर विराजमान था. उसने बहुत ही नाटकीय तरीके से उसने युद्ध भूमि में प्रवेश किया. राजा पौंड्रक के इस अवतार को देखकर भगवान कृष्ण को बहुत ही हंसी आई. इसके बाद भगवान कृष्ण ने पौंड्रक का वध किया और वापस द्वारिका लौट गए. युद्ध के पश्चात बदले की भावना से पौंड्रक के पुत्र ने भगवान कृष्ण का वध करने के लिए मारण पुरश्चरण यज्ञ किया, पर भगवन कृष्ण को मारने के लिए द्वारिका की तरफ गई वह आग की लपट लौटकर काशी आ गई और सुदर्शन की मृत्यु की वजह बनी. उसने काशी नरेश के पुत्र सुदर्शन को ही भस्म कर दिया.