Vat Savitri Vrat 2022: इस साल वट सावित्री व्रत 30 मई 2022 दिन सोमवार को रखा जाएगा. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल ये व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है. वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी और वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की विधि-विधान से पूजा करती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वट सावित्री व्रत का महत्व करवा चौथ के व्रत जितना होता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं. मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संतापों का नाश करने वाली होती है. कहा जाता है कि इसी दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थीं. तभी से महिलाएं सावित्री के समान अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए इस व्रत को करती हैं.
वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं प्रातः उठकर स्नान आदि करके सोलह शृंगार करती हैं. पूजा का सामान तैयार करके बरगद के पेड़ के नीचे बैठ कर पूजा करती हैं और कथा सुनती हैं. बरगद के पेड़ को जल अर्पित करती हैं और रोली या चंदन का टीका लगाती हैं. इस दिन विधिवत पूजा करने से महिलाओं अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है. इस दिन पूजा की थाली का विशेष महत्व है. ऐसे में आज ही पूजा की पूरी लिस्ट तैयार कर लें. चलिए जानते हैं वट सावित्री व्रत के पूजा में इस्तेमाल होने वाली चीजों के बारे में.
वट सावित्री व्रत की पूजा सामग्री
सावित्री और सत्यवान की मूर्ति, बांस का पंखा, कच्चा सूत, लाल रंग का कलावा, बरगद का फल, धूप, मिट्टी का दीपक, फल, फूल, बतासा, रोली, सवा मीटर का कपड़ा, इत्र, पान, सुपारी, नारियल, सिंदूर, अक्षत, सुहाग का सामान, घर से बनी पुड़िया, भीगा हुआ चना, मिठाई, घर में बना हुआ व्यंजन, जल से भरा हुआ कलश, मूंगफली के दाने, मखाने.
वट सावित्री पूजा विधि
- इस दिन महिलाएं प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करके लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें और श्रृंगार करके तैयार हो जाएं. साथ ही सभी पूजन सामग्री को एक स्थान पर एकत्रित कर लें और थाली सजा लें.
- किसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की प्रतिमा स्थापित करें. फिर बरगद के वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें और पुष्प, अक्षत, फूल, भीगा चना, गुड़ व मिठाई चढ़ाएं.
- फिर वट के वृक्ष पर सूत लपेटते हुए सात बार परिक्रमा करें और अंत में प्रणाम करके परिक्रमा पूर्ण करें.
- अब हाथ में चने लेकर वट सावित्री की कथा पढ़ें या सुनें.
- इसके बाद पूजा संपन्न होने पर ब्राह्मणों को फल और वस्त्रों करें.