Vat Savitri Vrat Katha : हर साल ज्येष्ठमास की पूर्णिमा के दिन सावित्री का व्रत रखा जाता है. सावित्री भद्र देश के राजा अश्वपति की बेटी थी. राजा अश्वपति ने 18 वर्षों तक यज्ञ किया और सावित्री का जन्म हुआ. सत्यवान को पति चुनने के बाद, नारद मुनि ने बताया कि सत्यवान की आयु अल्प है. सावित्री ने सत्यवान से विवाह किया और उनकी मृत्यु के दिन यमराज से संघर्ष किया. सावित्री की निष्ठा और पति परायणता के कारण यमराज ने सत्यवान को जीवनदान दिया. ज्यादातर लोग ये कहानी जानते हैं लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि ये कैसे हुए. सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राणों की रक्षा कैसे की. ये कहानी क्या सीख देती है. अगर आप पौराणिक कहानी पढ़ना पसंद करते हैं तो ये कहानी भी आपको जरूर पसंद आएगी.
आइये सुनते है सावित्री की व्रत कथा भद्र देश के एक राजा थे. उनका नाम अश्वपति था. भद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी. उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए पूरे मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन 1,00,000 आहूतिया दी. 18 वर्षों तक ये क्रम जारी रहा. इसके बाद उन पर कृपा हुई और उनके घर में एक कन्या ने जन्म लिया. उस कन्या का नाम सावित्री रखा गया. अब सावित्री बड़ी हो गई और बड़ी होकर वो बहुत ही रूपवान हो गई. उसके योग्य कोई वर नहीं मिल रहा था वरना मिलने की वजह से सावित्री के पिता बहुत दुखी थे. उन्होंने अपनी कन्या सावित्री से कहा कि तुम स्वयं ही अपने लिए योग्य पर तलाश कर लाओ. सावित्री अपने पिता की आज्ञा पाकर अपने लिए वर ढूंढने निकल गयी.
सावित्री तपोवन में भटकने लगी. वहां उसे सालव देश के राजा धूम सेन मिले क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था इसलिए वो वही रह रहे थे. उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उसका वरन कर लिया. इसके बाद सावित्री घर लौट आई. सावित्री जब घर पहुंची तो उसने अपने पिता के साथ नारद ऋषि को देखा. पिता के पूछने पर उसने बताया कि उसने सालब देश के राजकुमार सत्यवान को अपना पति स्वीकार कर लिया है.
जब नारद ऋषि को ये बात पता चली तो उन्होंने कहा की हे राजन ये आप क्या कर रहे हैं? सत्यवान् गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं पर उनकी आयु बहुत कम हैं. वो अल्प आयु हैं, एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी. ऋषिराज नारद की बात सुनकर अश्वपति राजा घोर चिंता में डूब गए. उन्होंने सावित्री से कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्प आयु है. तुम्हें किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए.
सावित्री ने कहा पिताजी आर्य कन्याएं अपने पति का एक ही बार वरण करती हैं. राजा एक ही बार आज्ञा देता है और पंडित एक ही बार प्रतिज्ञा करते है और कन्यादान भी एक बार ही किया जाता है. सावित्री हट करने लगी और बोली मैं सत्यवान् से ही विवाह करूंगी. जब सावित्री नहीं मानी तो राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से करा दिया. सावित्री अपनी सुसराल पहुंचते ही अपने साथ ससुर की सेवा करने लगी.
समय बीतने लगा, नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था. वह दिन जैसे जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगी. सावित्री ने 3 दिन पहले से ही उपवास रखने शुरू कर दिए और नारद मुनि द्वारा बताई तिथियों पर पितरों का पूजन भी किया. हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गए.उस दिन उसके साथ में सावित्री भी गई.
जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ गए तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा. दर्द से व्याकुल होने के कारण सत्यवान पेड़ से नीचे आ गई. सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगी तभी वहां यमराज आते दिखाई दिए. यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे. सावित्री भी उनके पीछे पीछे चल पड़ी. यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की की यही विधि का विधान है. पर सावित्री नहीं मानी और यमराज के पीछे चल पड़ी. उन्होंने यमराज से कहा कि मैं सत्यवान को ले जाने नहीं दूंगी.
सावित्री की निष्ठा और पति परायण्ता को देखकर यमराज ने सावित्री से कहा है देवी तुम धन्य हो तुम मुझसे. कोई भी वरदान मांगो. सावित्री में कहा मेरे सास ससुर अंधे हैं आप उन्हें दिव्य ज्योति प्रदान करें. यमराज ने कहा ठीक है, ऐसा ही होगा. जाओ अब यहां से लौट जाओ लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे पीछे चलती रही. यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ.
सावित्री ने कहा भगवान मुझे अपने पति देव के पीछे पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है. पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है. सावित्री की ये बात सुनकर यमराज ने उन्हें एक और वर मांगने को कहा. सावित्री बोली, मेरे ससुर का राज्य छिन गया है, आप पुनः वापस दिला दें. यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम यहां से लौट जाओ. लेकिन सावित्री पीछे पीछे चलती रही.
सावित्री को चलता देख यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा. इस पर सावित्री ने 100 संतान और सौभाग्य का वर मांग लिया. यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया. सावित्री ने यमराज से कहा प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं आपने मुझे पुत्रवती होने का, संतान का वरदान दिया है. अब आप मेरे पति को कैसे ले जा सकते हैं?
यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े. यमराज अंतर ध्यान हो गए और सावित्री उसे वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था और सत्यवान फिर से जीवित हो गए. दोनों खुशी खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े. जब दोनों घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनके माता पिता की आंखों की दृष्टि लौट आई है. इसके बाद उन्हें उनका राज्य भी वापस मिल गया. इस प्रकार सावित्री सत्यवान् हमेशा सुख भोगते रहे.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau