Vivah Panchami 2020: ...तो इसलिए लोग राम-सीता विवाह के दिन नहीं करते अपनी बेटी की शादी

आज यानि कि शनिवार को विवाह पंचमी का मनाई जा रही है. इस दिन भगवान राम और माता सीता विवाह के बंधन में बंधे थे. विवाह पंचमी का त्योहार आज नेपाल के जनकपुरधाम और अयोध्या के मंदिरों में धूमधाम से मनाई जाती है.

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Vineeta Mandal
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विवाह पंचमी 2020( Photo Credit : (सांकेतिक चित्र))

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आज यानि कि शनिवार को विवाह पंचमी का मनाई जा रही है. इस दिन भगवान राम और माता सीता विवाह के बंधन में बंधे थे. विवाह पंचमी का त्योहार आज नेपाल के जनकपुरधाम और अयोध्या के मंदिरों में धूमधाम से मनाई जाती है. एक बेटी के विवाह के समय जिस तरह की तैयारी और रस्में अदा की जाती है, उसे आज भी जनकपुर में निभाने की परंपरा है.  बता दें कि माता सीता का जन्म जनकपुरधाम में ही हुआ था, जो नेपाल का मिथिलांचल क्षेत्र में स्थित है. विवाह पंचमी के मौके पर जनकपुर में विशेष आयोजन किया जाता है.

हर साल मार्गशीष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है.  भगवान विष्णु का जिस अवतार में विवाह हुआ हो, वह दिन अबूझ मुहूर्त के नाम से जाना जाता है, बताया जाता है कि उस दिन बिना पंचाग देखे विवाह कर सकते हैं लेकिन विवाह पंचमी के दिन इस तरह की प्रथा नहीं है. 

माता सीता को भगवान राम से रहना पड़ा था दूर

राम और सीता एक आदर्श पति- पत्नि के रूप में जाने जाते हैं, क्योंकि दोनों का प्रेम अद्भुत था, एकदम ईमानदार और पवित्र. भगवान राम और सीता की जोड़ी का उदाहरण दिया जाता है लेकिन फिर भी विवाह पंचमी के दिन कोई भी अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहता है.  मां सीता मिथिलांचल की बेटी थी और उन्हें विवाह के बाद पति से दूरी और ताउम्र दुख झेलना पड़ा था इसलिए कोई भी मिथिलावासी इस दिन अपनी बेटियों को शादी के बंधन में नहीं बांधता हैं. 

भगवान राम के विवाह करने के बाद उनके मां सीता को वनवास काटना पड़ा था. इसके बाद रावण द्वारा अपहरण के बाद भी उन्हें अपने पति से दूर रहना पड़ा. लंका विजय के बाद उन्हें अग्निपरीक्षा से भी गुजरना पड़ा था. इतना ही नहीं जब वो गर्भवती हुई तो उन्हें भगवान राम ने त्याग दिया और उन्हें जंगल में पति और सभी राजमहल सुख से दूर होना पड़ा. इसके बाद वो कभी अपने पति राम के साथ नहीं रह पाई. 

मां सीता के वैवाहिक जीवन की तकलीफ को देखते हुए ही कोई भी विवाह पंचमी के दिन अपनी बेटी की शादी नहीं करता है. लोगों का मानना है कि कहीं सीता की तरह ही उनकी बेटियों को हमेशा के लिए दुख का सामना न करना पड़े.

विवाह पंचमी शुभ मुहूर्त

  • 18 दिसम्बर को दोपहर 02 बजकर 22 मिनट पर आरंभ.
  • 9 दिसंबर दोपहर 02 बजकर 14 मिनट पर पंचमी तिथि का समाप्त.

इस मंत्र का करें जाप

प्रमुदित मुनिन्ह भावंरीं फेरीं। नेगसहित सब रीति निवेरीं॥

विवाह में आ रही समस्या होगी दूर-

कहा जाता है विवाह पंचमी का व्रत करने से शादी में आ रही सभी बाधाएं दूर हो जाती है. अगर किसी लड़की की शादी में परेशानी आ रही है तो वो विवाह पंचमी के दिन पूरे मन से विधि-विधान के साथ भगवान राम और माता सीता की पूजा करें. ऐसा करने से व्रत करने वाली लड़कियों को अच्छे और सुशील वर की प्राप्ति होती है. 

ऐसे करें विवाह पंचमी की पूजा-

सबसे पहले सुबह स्नान कर के साफ-सुथरे कपड़े पहन लें. इसके बाद श्री राम विवाह का संकल्प लें. अब भगवान राम और माता सीता की मूर्ति स्थापित करें. इसके बाद भगवान राम को पीले और माता सीता को लाल वस्त्र अर्पित करें. इसके बाद बालकाण्ड में विवाह प्रसंग का पाठ करें. इस दिन बालकाण्ड में भगवान राम और सीता जी के विवाह प्रसंग का पाठ करना शुभ माना जाता है. इस दिन रामचरितमानस का पाठ करने से भी पारिवारिक जीवन सुखमय होता है. भगवान राम और माता सीता की पूजा करने से घरेलू कलह दूर हो जाती है. 

विवाह पंचमी की पौराणिक कथा-

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, सीता माता का जन्‍म धरती से हुआ था. कहा जाता है कि राजा जनक हल जोत रहे थे तब उन्‍हें एक बच्‍ची मिली और उसे वो अपने महल में ले लाए और अपनी पुत्री की तरह उनका पालन-पोषण करने लगे. उन्‍होंने उस बच्‍ची का नाम सीता रखा. लोग उन्‍हें जनक पुत्री सीता या जानकी कहकर पुकारते थे. मान्‍यता है कि माता सीता ने एक बार मंदिर में रखे भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था. उस धनुष को परशुराम के अलावा किसी ने नहीं उठाया था. उसी दिन राजा जनक ने निर्णय लिया कि वो अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ करेंगे जो इस धनुष को उठा पाएगा. फिर कुछ समय बाद माता सीता के विवाह के लिए स्‍वयंवर रखा गया. स्‍वयंमर के लिए कई बड़े-बड़े महारथियों, राजाओं और राजकुमारों को निमंत्रण भेजा गया. उस स्‍वयंवर में महर्षि वशिष्‍ठ के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम राम और उनके छोटे भाई लक्ष्‍मण भी दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे.

स्‍वयंवर शुरू हुआ और एक-एक कर सभी राजा, धुरंधर और राजकुमार आए लेकिन उनमें से कोई भी शिव के धनष को उठाना तो दूर उसे हिला भी नहीं सका. यह देखकर राजा जनक बेहद दुखी हो गए और कहने लगे कि क्‍या मेरी पुत्री के लिए कोई भी योग्‍य वर नहीं है. तभी महर्षि वशिष्‍ठ ने राम से स्‍वयंवर में हिस्‍सा लेकर धनुष उठाने के लिए कहा. राम ने गुरु की आज्ञा का पालन किया और एक बार में ही धनुष को उठाकर उसमें प्रत्‍यंचा चढ़ाने लगे, लेकिन तभी धनुष टूट गया. इसी के साथ राम स्‍वयंवर जीत गए और माता सीता ने उनके गले में वरमाला डाल दी. मान्‍यता है कि सीता ने जैसे ही राम के गले में वर माला डाली तीनों लोक खुशी से झूम उठे. यही वजह है कि विवाह पंचमी के दिन आज भी धूमधाम से भगवान राम और माता सीता का गठबंधन किया जाता है.

Source : News Nation Bureau

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